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Monday, March 9, 2020

वायु एवं वायुमंडल संरचना और संघटन


Air and Atmosphere Structure and Composition
Air and Atmosphere Structure and Composition



वायु एवं वायुमंडल संरचना और संघटन

मानव और सभी जीव जंतुओं को जीवित रहने के लिए वायु  आवश्यक है। मनुष्य जैसे कछ जीव बिना भोजन और पानी लिये कुछ समय तक जीवित रह सकते हैं, लेकिन सांस लिये बिना कुछ मिनट भी जीवित रहना सम्भव नहीं होता। यही कारण है कि हमें वायमंडल का विस्तृत ज्ञान होना चाहिए। वायुमंडल विभिन्न प्रकार के गैसों का मिश्रण है और यह पृथ्वी को सभी ओर से ढके हुए है। इसमें मनुष्यों एवं जंतुओं के जीवन के लिए आवश्यक गैसे जैसे ऑक्सीजन तथा पौधों के जीवन के लिए काबन डाईऑक्साइड पाई जाती है। वायु पृथ्वी के द्रव्यमान का अभिन्न भाग है तथा इसके कल द्रव्यमान का 99 प्रतिशत पृथ्वी की सतह से 32 कि०मी० की ऊँचाई तक स्थित है। वायु रंगहीन तथा गंधहीन होती है तथा जब यह पवन की तरह बहती है, तभी हम इसे महसूस कर सकते है।
वायुमंडल का संघटन 
वायुमंडल गैसों, जलवाष्प एवं धूल कणों से बना है। जो वायुमंडल के निचले भाग में पाई जाती हैं। वायुमंडल की ऊपरी परतों में गैसों का अनुपात इस प्रकार बदलता है जैसे कि 120 कि०मी० की ऊँचाई पर ऑक्सीजन की मात्रा नगण्य हो जाती है। इसी प्रकार, कार्बन डाईऑक्साइड एवम् जलवाष्प पृथ्वी की सतह से 90 कि०मी० की ऊँचाई तक ही पाये जाते हैं।


Gas in Atmosphere Structure
वायुमंडल में गैसों का प्रतिशत




गैस

कार्बन डाईऑक्साइड मौसम विज्ञान की दृष्टि से बहुत ही
महत्त्वपूर्ण गैस है, क्योंकि यह सौर विकिरण के लिए पारदर्शी है, लेकिन पार्थिव विकिरण के लिए अपारदर्शी है। यह सौर विकिरण के एक अंश को सोख लेती है तथा इसके कुछ भाग को पृथ्वी की सतह की ओर प्रतिबिंबित कर देती है। यह ग्रीन हाऊस प्रभाव के लिए पूरी तरह उत्तरदायी है। दूसरी गैसों का आयतन स्थिर है, जबकि पिछले कुछ दशकों में मुख्यतः जीवाश्म ईंधन को जलाये जाने के कारण कार्बन डाईऑक्साइड के आयतन में लगातार वृद्धि हो रही है। इसने हवा के ताप को भी बढ़ा दिया है। ओज़ोन वायुमंडल का दूसरा महत्त्वपूर्ण घटक है जो कि पृथ्वी की सतह से10 से 50 किलोमीटर की ऊँचाई के बीच पाया जाता है। यह एक फिल्टर कि तरह  कार्य करता है तथा सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर उनको पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से रोकता है।

जलवाष्प 

जलवाष्प वायुमंडल में उपस्थित ऐसी परिवर्तनीय गैस है  जो ऊँचाई के साथ घटती जाती है। गर्म तथा आर्द्र उष्ण कटिबंध में यह हवा के आयतन का 4 प्रतिशत होती है, जबकि ध्रुवों जैसे ठंडे तथा रेगिस्तानों जैसे शुष्क प्रदेशों में यह हवा के आयतन के 1 प्रतिशत भाग से भी कम होती है। विषुवत् वृत्त से ध्रुव की तरफ जलवाष्प की मात्रा कम होती जाती है। यह सूर्य से निकलने वाले ताप के कुछ भाग को अवशोषित करती है तथा पृथ्वी से निकलने वाले ताप को संग्रहित करती है। इस प्रकार यह एक कवच की तरह कार्य करती है तथा पृथ्वी को न तो अधिक गर्म तथा न ही अधिक ठंडा होने देती है। जलवाष्प वायु को स्थिर और अस्थिर होने में भी योगदान देती है।

धूलकण

वायुमंडल में छोटे-छोटे ठोस कणों को भी रखने की क्षमता होती है। ये छोटे कण विभिन्न स्रोतों जैसे- समुद्री नमक, महीन मिट्टी, धुएँ की कालिमा, राख, पराग, धूल  तथा उल्काओं के टूटे हुए कण से निकलते हैं। धूलकण  प्रायः वायुमंडल के निचले भाग में मौजूद होते हैं. फिर भी संवहनीय वायु प्रवाह इन्हें काफी ऊँचाई तक ले जा सकता है। धूलकणों का सबसे अधिक जमाव उपोष्ण और  शीतोष्ण प्रदेशों में सूखी हवा के कारण होता है, जो it विषवत् और ध्रुवीय प्रदेशों की तुलना में यहाँ अधिक। मात्रा में होते है। धूल और नमक के कण आर्द्रताग्राही केंद्र  की तरह कार्य करते हैं जिसके चारों ओर जलवाष्प संघनित होकर मेघों का निर्माण करती हैं।

वायुमंडल की संरचना 

 अलग-अलग घनत्व तथा तापमान वाली विभिन्न परतों का बना होता है। पृथ्वी की सतह के पास घनत्व : अधिक होता है, जबकि ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ यह । घटता जाता है। तापमान की स्थिति के अनुसार वायुमंडल को पाँच विभिन्न संस्तरों में बाँटा गया है। ये हैं क्षोभमंडल. समतापमंडल, मध्यमंडल, बाह्य वायुमंडल तथा बहिर्मंडल।।
क्षोभमंडल वायुमंडल का सबसे नीचे का संस्तर है। इसकी ऊँचाई सतह से लगभग 13 कि०मी० है तथा यह ध्रुव के निकट 8 कि०मी० तथा विषुवत् वृत्त पर 18 कि.मी. की ऊँचाई तक है। क्षोभमंडल की मोटाई विषुवत् वृत्त पर सबसे अधिक है, क्योंकि तेज वायुप्रवाह के कारण ताप का अधिक ऊँचाई तक संवहन किया जाता है। इस सस्तर में धूलकण तथा जलवाष्प मौजूद होते हैं। मौसम म परिवर्तन इसी संस्तर में होता है। इस संस्तर में प्रत्येक 165 मी. की ऊँचाई पर तापमान 1° से. घटता जाता है। जैविक क्रिया के लिए यह सबसे महत्त्वपूर्ण संस्तर है।
क्षोभमंडल और समतापमंडल को अलग करने वाले भाग को क्षोभसीमा कहते हैं। विषुवत् वृत्त के ऊपर क्षोभ सीमा में हवा का तापमान -80° से. और ध्रुव के ऊपर -45° से. होता है। यहाँ पर तापमान स्थिर होने के कारण इसे क्षोभसीमा कहो जाता है। समतापमंडल इसके ऊपर 50 कि०मी० की ऊँचाई तक पाया जाता है। समतापमंडल का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण यह है कि इसमें ओजोन परत पायी जाती है। यह परत पराबैंगनी किरणों को अवशोषित कर पृथ्वी को ऊर्जा के तीव्र तथा हानिकारक तत्त्वों से बचाती है। मध्यमंडल, समतापमंडल के ठीक ऊपर 80 कि०मी० की ऊँचाई तक फैला होता है। इस संस्तर में भी ऊँचाई के साथ-साथ तापमान में कमी होने लगती है और 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँचकर यह -100° से. हो
जाता है। मध्यमंडल की ऊपरी परत को मध्यसीमा कहते हैं। आयनमंडल मध्यमंडल के ऊपर 80 से 400 किलोमीटर के बीच स्थित होता है। इसमें विद्युत आवेशित कण पाये जाते हैं, जिन्हें आयन कहते हैं तथा इसीलिए इसे आवनमंडल के नाम से जाना जाता है। पृथ्वी के द्वारा भेजी गई रेडियो तरंगें इस संस्तर के द्वारा वापस पृथ्वी पर लौट आती हैं। यहाँ पर ऊँचाई बढ़ने के साथ ही तापमान में वृद्धि शुरू हो जाती है। वायुमंडल का सबसे ऊपरी संस्तर, जो बाह्यमंडल के ऊपर स्थित होता है उसे बहिर्मडल कहते हैं। यह सबसे ऊँचा संस्तर है तथा इसके बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त हैं।





Atmosphere Structure and Composition
Atmosphere Structure and Composition

वायु

 हमारी पृथ्वी के चारों ओर एक गैसीय पदार्थ उपस्थित हैं
इस गैसीय पदार्थ को वायु कहते हैं। कोई भी सजीव बिना वायु के जीवित नहीं रह सकता वायु का आवरण जो पृथ्वी को चारों ओर से घेरे हुए वायुमण्डल कहलाता है। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण (के कारण वायु का यह घेरा पृथ्वी को जकड़े हुए है
 वायु की विशेषताएं:
वायु सभी जगह व्याप्त है किन्तु हम इसे देख नही पाते है। हम केवल वायु का अनुभव ही कर सकते हैं।
वायु एक पदार्थ है। 
इसमें भार होता है। 
 इसमें कोई रंग नहीं होता अर्थात वायु रंगहीन है। 
  इसके आर-पार देखा जा सकता है। अतः वायु पारदर्शक
होती है। 
वायु अनेक भारी व हल्की गैसों का मिश्रण है। वायुमंडल में 75 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21 प्रतिशत ऑक्सीजन, 0.03 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड,0.90 प्रतिशत ऑर्गन तथा शेष अन्य गैंसें व कण पाए जाते हैं। इस प्रकार वायु में सर्वाधिक मात्रा में नाइट्रोजन गैस पाई जाती है। यह गैस अपेक्षाकृत कम क्रियाशील होती है। 
 धरातल के समीप वायु का घनत्व अधिक पाया जाता है तथा ज्यों-ज्यों हम धरातल से ऊपर उठते हैं, घनत्व
कम होता जाता है। •सामान्यतः भारी गैसें वायु मण्डल के निचले भाग में तथा हल्की गैसें वायुमण्डल के ऊपरी भाग में पाई जाती है।
वायु में कोई गंध या स्वाद नहीं है। 
वायु में जलवाष्प होती है। यही जलवाष्प गिलास की
ठण्डी सतह के सम्पर्क में आने पर वहाँ बूंदों के रूप में परिवर्तित होकर जमा हो जाती है। जिस प्रकार सभी सजीवों को साँस लेने के लिए वाय । आवश्यक है उसी प्रकार किसी वस्तु के जलने के लिए भी वायु जरूरी है। वायु पर गर्मी और सर्दी का असर पड़ता है। गर्मी पाकर वायु फैलती है। गर्मियों में गाड़ियों के  ट्युब के फटने का भी यही कारण है। सर्दी पाकर वायु सिकुड़ती है।
वायु गर्म होकर ऊपर उठती है। गर्मियों में तेज हवा  और आँधी चलने का यही कारण है।  हर खाली और रंध्रदार वस्तु में वायु होती है। 
जलवाष्प व धूल के कण भी वायु के अवयव हैं। 
यदि वायु का तापमान बढ़ता है तो उसका आयतन भी बढ़ता है। 
वायु दबाव डालती है। बन्द पात्र में दाब बढ़ाने पर वायु संपीड़ित हो जाती है। जैसे-जैसे दाब बढ़ाते हैं वायु और अधिक संपीड़ित होती है। संपीड़ित वायु का दाब अधिक होता है। वायु दाब में अंतर होने पर वायु का प्रवाह होता है। 1 मौसम परिवर्तन में वायुदाब की प्रमुख भूमिका होती है।
वायु का भार और दाब इसके तापमान के अनसार बदलते हैं।वायु में विभिन्न गैसों का प्राकृतिक रूप से संतुलन बना रहता है।
 वायु दिशासूचक यंत्र- मौसम संबंधी जानकारी के लिए वायु के बहने की दिशा का ज्ञाम होना आवश्यक है। वायु की दिशा का ज्ञान जिस यंत्र से होता है उसे वायु दिशासूचक यंत्र कहते हैं। वायु दिशा मापी का तीर सदैव उस दिशा को बताता है जिधर से वायु बह रही है।
पवन- जब वायु चलती है तो उसे पवन कहा जाता है। चलती हुई पवन में शक्ति (ऊर्जा) होती है। 
 पवनें उच्च वायुदाब कटिबंधों से निम्न वायुदाब
कटिबंधों की ओर चलती हैं। पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवनों की दिशा बदल जाती है। 
आर्द्रता- आर्द्रता वायु में जलवाष्प की उपस्थिति का बोध कराती है  वायुदाब को बेरोमीटर नामक यंत्र से मापा जाता है। इसे मापने की प्रचलित इकाई मिलीबार, पास्कल या किलोपास्कल होती है।
 वायुराशियाँ- वायु राशियाँ वायुमण्डल का वह विस्तृत भाग हैं जिनमें भौतिक गुणों विशेषतः तापमान और आर्द्रता संबंधी लक्षणों में क्षैतिज तल में लगभग समानता पाई जाती है। इस प्रकार वायु राशियाँ वायु का ऐसा विशाल पुंज है जो हजारों किमी क्षेत्र में फैला होता है। 
 थल समीर- रात्रि में जब वायु स्थल से समुद्र की ओर बहना शुरू कर देती है तो उसे थल समीर कहते हैं।
  जल समीर- दिन में समट से स्थल की ओर चलने वाली हवा को जल समीर कहते है।
   चक्रवातः चक्रवात वे वायुमंडलीय विक्षोभ हैं जिनके केन्द्र में निम्न वायुदाब तथा केन्द्र से बाहर परिधि की ओर उच्च वायुदाब होता है। केन्द्र में निम्न वायुदाब होने के कारण चक्रवात में चारों ओर से वायु केन्द्र की ओर गोलाकार आकृति में गतिशील हीती है तथा वर्षा करती है। फलस्वरूप मेघ व वर्षा चक्रवात के विशिष्टं गुण हैं । चक्रवातों से अधिकांश  वर्षा उसके अग्रभाग से ही होती है।  प्रतिचक्रवात चक्रवात
से बिल्कुल विपरीत प्रकृति के होते हैं। प्रतिचक्रवात वृनाकार समभार रेखाओं से घिरा वायु का ऐसा क्रम है जिसके केन्द्र में उच्च वायुदाब रहता है तथा यह वायुभार बाहर की ओर कम होता जाता है। इनमें हवाएँ केन्द्र से परिधि की ओर चलती है। 

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