भारतीय सविंधान की विशेषताएँ व स्रोतJagriti PathJagriti Path

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Sunday, March 15, 2020

भारतीय सविंधान की विशेषताएँ व स्रोत


Indian constitution qualities
Indian constitution qualities



भारतीय संविधान की विशेषताएँ एवं स्रोत

भारत के संविधान की विशेषताएं निम्न प्रकार है।

सम्पूर्ण प्रभुत्वशाली संविधान 

भारत का संविधान लोकप्रिय प्रभुसत्ता पर आधारित संविधान है अर्थात यह भारतीय जनता द्वारा निर्मित है। इस संविधान द्वारा अन्तिम शक्ति भारतीय जनता को प्रदान की गई है। संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि 'हम भारत के लोग इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित व आत्मार्पित करते हैं' अर्थात भारतीय जनता ही इस की निर्माता है, जनता ने स्वयं की इच्छा से इसे अंगीकार, अधिनियमित व आत्मर्पित किया है। इसे किसी अन्य सत्ता द्वारा थोपा नहीं गया है।

~प्रस्तावना की व्यवस्था

भारतीय संविधान के मौलिक उद्देश्यों व लक्ष्यों को संविधान की प्रस्तावना में दर्शाया गया है। डिॉ. के.एम. मुन्शी मे इसे संविधान की राजनीतिक कुडली कहा है। इसके महत्त्व को देखते हुए इसे संविधान की आत्मा भी कहा जाता है। प्रस्तावना की शुरुआत में 'हम भारत के लोग' से अभिप्राय है कि अन्तिम प्रभुसत्ता भारतीय जनता में निहित है। यह संविधान की मुख्य विशेषता है। 

~विश्व का सबसे बड़ा संविधान 

जहां अमेरिका के संविधान में मात्र चार पन्ने तथा  07 अनुच्छेद, कनाडा के संविधान में 147 अनुच्छेद, आस्ट्रेलिया के संविधान में 128 अनुच्छेद व दक्षिण अफ्रीका के संविधान में 153 अनुच्छेद हैं वहीं हमारा संविधान व्यापक व विस्तृत संविधान है। इसमें 395 अनुच्छेद 22 भाग व 12 अनुसूचियां, 05 परिशिष्ट है। इसमें 2019 तक 104 संशोधन हो चुके हैं और संशोधन की यह प्रक्रिया अनवरत जारी है। इस कारण भी इसका स्वरूप विशाल हो जाता है। हमारा संविधान संघात्मक है, इसमें संघ व राज्यों के बीच सम्बन्धों का बहुत व्यापक वर्णन किया गया है। संविधान के एक अध्याय में तो राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतो का ही उल्लेख है जो अधिकांश देशों के संविधान में नहीं है। संविधान की इसी विशालता को लेकर हरिविष्णु कामथ ने कहा था कि हमें इस बात का गर्व है कि हमारा संविधान विश्व का सबसे विशाल संविधान है।


~लिखित एवं निर्मित संविधान 

- भारतीय संविधान संविधान सभा द्वारा निर्मित एवं लिपिबद्ध किया गया दस्तावेज है। संविधान सभा ने इसे 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में तैयार किया था। 


~संसदीय शासन व्यवस्था - 

डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के अनुसार " संसदात्मक प्रणाली में शासन के उत्तरदायित्व का मूल्यांकन एक निश्चित समय बाद तो होता ही है इसके साथ साथ दिन प्रतिदिन भी होता रहता है। इस प्रणाला में कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति सामूहिक रूप स उत्तरदायी होती है। राष्ट्रपति का पद गरिमा व प्रतिष्ठा का होता है पर उसकी स्थिति सांविधानिक प्रधान की है, वास्तविक शक्तियां मंत्रिमण्डल के द्वारा प्रयोग की जाती हैं। संसद का विश्वास समाप्त होने पर मंत्रिमण्डल को त्यागपत्र देना पड़ता है। इस व्यवस्था से प्रधानमंत्री ही मंत्रिमण्डल का नेतत्व करता है भारत में संसदीय व्यवस्था को केन्द्र के साथ राज्यों में भी अपनाया गया है जहां राज्यपाल सांविधानिक प्रमुख होता है। 

मौलिक अधिकार व कर्तव्य का प्रावधान

 भारतीय संविधान में नागरिकों के मूल अधिकारों का वर्णन संविधान के भाग -3 में अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है। संविधान निर्माताओं ने 07 मौलिक अधिकार देश के नागरिकों को दिये थे 1. समता का अधिकार 2. स्वतंत्रता का अधिकार 3 शोषण के विरुद्ध अधिकार 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार 5. संस्कृति व शिक्षा सम्बन्धी अधिकार 6. सांविधानिक उपचारों का अधिकार 7. सम्पति का अधिकार भारतीय संविधान में 44वें संशोधन के बाद सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया है। अतः अब मौलिक अधिकार 06 रह गये है। इन अधिकारों का हनन होने पर नागरिक न्यायालय की शरण ले सकते हैं। 86वें संवैधानिक संशोधन (दिसम्बर 2002) जो कि जुलाई 2009 में संसद में पारित किया गया तथा 1 अप्रैल 2010 को लागू हुआ इसके द्वारा शिक्षा (प्रारम्भिक) के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में संविधान में शामिल कर लिया गया है। अब अनुच्छेद 21 के बाद एक नया अनुच्छेद 21क जोड़ा गया है जिसके अनुसार 6 से 14 वर्ष की उम्र के सभी बच्चों को अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा प्राप्त हो_की व्यवस्था करना राज्य का दायित्व है। याद रखें कि यह अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार में जोड़ा गया है।
 तथा बंयालीसवें संविधान संशोधन 1976 में 11 मूल कर्तव्य की व्यवस्था की गई।

राज्य के नीति निर्देशक तत्व का समावेश

आयरलैण्ड के राविधान से प्रेरित होकर सविधान के भाग 4 में नीति निर्देशक तत्वों का वर्णन किया गया है। राज्य के नीति निर्देशक तत्व वे विचार हैं जो भविष्य में बनने वाली सरकारों के समक्ष पथ प्रदर्शक की भूमिका का निर्वहन करते हैं। यद्यपि इनके क्रियान्वयन के लिए सरकार को बाध्य नहीं किया जा सकता। ये न्यायालय में वाद योग्य भी नहीं है।  लोक कल्याणकारी राज्य के लिए आवश्यक होने के कारण किसी भी सरकार द्वारा इनकी उपेक्षा संभव नहीं है। 

समाजवादी राज्य

42 वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा भारत को समाजवादी गणराज्य घोषित किया गया है। यद्यपि मूल संविधान में यह शब्द प्रयुक्त नहीं था। प्रस्तावना में यह शब्द भारतीय राज व्यवस्था को एक नई दिशा दिये जाने की भावना को दृष्टिगत रखकर जोड़ा गया है।

 वयस्क मताधिकार

हमारे देश के संविधान में 18 वर्ष की आयु प्राप्त प्रत्येक नागरिक को समान रूप से मताधिकार प्रदान किया गया है। यद्यपि मूल संविधान में आयु 21 वर्ष थी किन्तु संविधान में 61वें संशोधन द्वारा आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है। 

 पंथनिरपेक्षवादी  गणराज्य -

 भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार धर्म के क्षेत्र में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता प्रदान की गई है। धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव नहीं किया जा सकता। राज्य का कोई आधिकारिक धर्म नहीं है। किन्तु भारत में यूरोपीय मॉडल की भॉति राज्य और धर्म के बीच पार्थक्य नहीं है। संविधान राज्य को अधिकृत करता है कि वह धर्म से जुड़ी कुरीतियों का निराकरण करने के लिए धार्मिक मामलों में मूल्य आधारित हस्तक्षेप करें। इसे प्रसिद्ध राजनीतिशास्त्री राजीव भार्गव ने धर्म निरपेक्षता का उसूली फासले का सिद्धांत कहा है।

असाधारण दस्तावेज

  सविधान निर्माताओं की बुद्धिमता व दूरदृष्टि का प्रमाण कि उन्होंने संविधान में जनता द्वारा मान्य आधारभूत मूल्यों व सर्वोच्च आंकाक्षाओं को स्थान दिया। हमारा सविधान एक विलक्षण दस्तावेज है। दक्षिण अफ्रीका ने तो इसे प्रतिमान के रूप में अपने देश का संविधान बनान हेतु काम में लिया है। 

   एकात्मक तथा संघात्मक तत्वों का मिश्रण

भारत एक संघात्मक राज्य है, संविधान में सघ शब्द के स्थान पर Union of states शब्द का प्रयोग किया गया है संविधान के पहले अनुच्छेद में ही कहा गया है कि "भारत राज्यों का एकक होगा जिसे प्रचलन में राज्यों का संघ' भी कहा जाता है। संविधान निर्माताओं की आकांक्षा ऐसा संविधान बनाने की थी जिसमें केन्द्र सरकार भारत की एकता को बनाये रखे तथा राज्यों को भी स्वायतत्ता मिले। इस लिए इसमें संघात्मक व एकात्मक तत्वों का मिश्रण किया गया है। संविधान के अनेक प्रावधान केन्द्र को राज्यों की अपेक्षा शक्तिशाली बनाते हैं। जैसे अतिमहत्वपूर्ण विषयों को संघ सूची में स्थान, समवर्ती सूची में केन्द्र के निर्णय को प्रमुखता, अवशिष्ट शक्तियां केन्द्र के पास, आपात काल में केन्द्र का राज्यों पर नियंत्रण इकहरी नागरिकता अखिल भारतीय सेवायें, संसद को राज्यों के पुर्नगठन का अधिकार  राष्ट्रपति द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति, राज्यों की केन्द्र पर आर्थिक निर्भरता केन्द्र को मजबूती प्रदान करती है। राज्य अपना पृथक् संविधान नहीं रख सकते केवल एक ही संविधान केन्द्र व राज्य दोनों पर लागू होता है।
   

 न्यायपालिका की स्वतंत्रता

संविधान की सर्वोच्चता प्रजातंत्र की रक्षा, जनता के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए भारतीय संविधान में कई सवैधानिक व्यवस्थायें की गई है। भारत के राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के न्यायधीशों की नियुक्ति की जाती है तथा उन्हें संसद में महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता हैं। कार्यपालिका के आदेश तथा व्यवस्थापिका के कानून यदि संवैधानिक व्यवस्थाओं का उल्लंघन करते हैं तो न्यायपालिका को न्यायिक पुनरावलोकन उन्हें अवैध घोषित करने का अधिकार है। नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत पुनरावलोकन द्वारा बन्दी प्रत्यक्षीकरण, अधिकार पृच्छा जैसे लेखों को जारी किया जा सकता है। न्यायिक स्वतंत्रता के उदेश्य को प्राप्त करने के लिए ये सभी व्यवस्थायें की गई है। 

कठोर व लचीलापन 

 भारतीय सविधान कठोरता व लचीलेपन का मिश्रण है। किसी भी देश की परिस्थितियों में बदलाव के साथ संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होती है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की व्यवस्था है।

आपातकालीन परिस्थितियों के उपबंध

भाग 18 में आपातकालीन नियमों का उल्लेख किया गया है। अनुच्छेद 352 के अनुसार बाहरी आक्रमण, सशस्त्र विद्रह एवम यद्व की स्थिति में, अनुच्छेद 356 के अनुसार राज्यों में संवैधानिक तत्र का विफलता की स्थिति में तथा अनच्छेद 360 के अनुसार वित्तीय संकट उत्पन्न होने पर सम्पर्ण देश या दश किसी भाग में आपातकाल लाग किया जा सकता ह। इसमें शासन राष्ट्रपति के अधीन संचालित होता है। 

इकहरी नागरिकता  --

 सविधान द्वारा संघात्मक शासन की व्यवस्था की गई ह और सामान्यतया संघ राज्य के नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त होनी चाहिए- प्रथम, संघ की नागरिकता द्वितीय राज्य की नागरिकता। लेकिन भारतीय संविधान निर्माताओं का विचार था कि दोहरी नागरिकता भारत की एकता को बनाये रखने में बाधक हो सकती है अतः संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान, संघ राज्य की स्थापना करते हुए इकहरी नागरिकता के आदर्श को ही अपनाया गया है।

लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना 

 नीति निदेशक तत्वों से यह स्पष्ट हो जाता है कि संविधान निर्माताओं द्वारा संविधान के माध्यम से कल्याणकारी राज्य की स्थापना का आदर्श निश्चित किया गया है। इस हेतु केन्द्र व राज्य सरकारें नागरिको को पौष्टिक भोजन, आवास, वस्त्र, शिक्षा व स्वास्थ्य की सुविधायें उपलब्ध करवायें । नागरिकों के जीवन स्तर को ऊँचा उठायें। जहां तक संभव हो आर्थिक समानता की स्थापना की जाये। केन्द्र व राज्य सरकारें संविधान में दिये गये लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील हैं। जिसके लिए नियोजन की पद्वति को अपनाया गया है। 

अल्पसंख्यक एवम् पिछड़े वर्गों के कल्याण की  व्यवस्था 

 अल्पसंख्यकों के धार्मिक, भाषायी और सांस्कृतिक हितों की रक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। इसके अतिरिक्त संविधान अनुसचित जातियों व जनजाति क्षेत्रों के नागरिकों को सेवाओं, संसद विधान सभाओं और अन्य क्षेत्रों में विशेष संरक्षण प्रदान किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 330 व 332 के तहत अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों को लोक सभा व विधान सभाओं में आरक्षण प्रदान किया गया है। प्रारंभ में यह व्यवस्था 25 जनवरी 1960 तक के लिए की गई थी।किन्तु संविधान में संशोधन कर इसकी समय सीमा को बढाया जाता रहा है। 104 वे संविधान संशोधन में यह सीमा आगामी 10 वर्ष के लिए बढ़ा दी गई है।

अन्य विशेषताएं
*राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पद
*राष्ट्रपति के चुनाव में एकल संक्रमणिय मत प्रणाली
*न्यायिक पुनरावलोकन 
*संसदीय प्रभुता
*विश्व शांति के तत्वों का समा*राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख
*सता का विकेंद्रीकरण आदि

भारत के सविंधान में विभिन्न देशों से लिए गये प्रावधान  


भारत के सविंधान में विभिन्न देशों से लिए गये प्रावधान  
1
ब्रिटेन

संसदीय व्यवस्था, सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत, संसदीय विशेषाधिकार, एकल नागरिकता, विधायिका के अध्यक्ष का पद, नाम मात्र तथा वास्तविक कार्यपालिका, विधि निर्माण प्रक्रिया, द्विसदनात्मक प्रणाली, दैहिक स्वतंत्रता का सिद्धांत, बंदी प्रत्यक्षीकरण के लिए न्यायिक रिट का प्रावधान

2
अमेरिका

मूल अधिकार,संघीय व्यवस्था, उपराष्ट्रपति का पद, न्यायिक पुनरावलोकन, स्वतंत्र न्यायपालिका, संविधान की सर्वोच्चता, राष्ट्रपति पर महाभियोग की प्रक्रिया
3
आयरलैंड

नीति निदेशक तत्व, राष्ट्रपति के निर्वाचन में निर्वाचक मंडल की व्यवस्था, राज्यसभा में कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवा आदि से संबंधित विशिष्ट व्यक्तियों के मनोनयन की प्रणाली
4
कनाडा

संघात्मक व्यवस्था तथा केंद्र के पास अवशिष्ट शक्तियां
5
जर्मनी
आपदा प्रबंध

6
रूस 

मूल कर्तव्य

7
फ्रांस

निर्वाचित राष्ट्रपति का प्रावधान
8 
जापान 

अनुच्छेद 21 का शब्द कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया को छोड़कर
9
ऑस्ट्रेलिया

 संविधान की प्रस्तावना में निहित भावनाएं समवर्ती सूची

10
अफ्रीका 

संविधान की संशोधन पद्धती




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