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Wednesday, March 18, 2020

पंचायती राज व्यवस्था त्रिस्तरीय


Panchayatiraj
पंचायतीराज व्यवस्था




ग्राम स्तर Gram panchayat       
(ग्राम पंचायत)
 खण्ड  स्तर Panchayat samiti
 (पंचायत समिति) 
  जिला स्तर Jila parishad
(जिला परिषद)

भारत पंचायतीराज व्यवस्था का उद्भव एवं विकास


2 अक्टूबर, 1952 को भारत में सामदायिक विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया। बलवन्त राय मेहता समिति का गठन 1957 - सामुदायिक विकास कार्यक्रम की असफलता की जाँच हेतु। 1958 में राष्ट्रीय विकास परिषद ने बलबन्त राय मेहता समिति की प्रजातान्त्रिक विकेन्द्रीकरण (त्रि-स्तरीय पंचायती राज) की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए उसे क्रियान्वित करने के लिए कहा। आंध्र प्रदेश में प्रयोग के विचार से अगस्त, 1958 में कुछ हिस्सों में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण को लागू किया गया। 2 अक्टूबर, 1959 को पं. जवाहरलाल नेहरू ने बगदरी (नागौर) में प्रजातांत्रिक विकेन्द्रीकरण की योजना का श्री गणेश किया। उसे पंचायती राज कहा गया। राजस्थान प्रथम राज्य है जहाँ सर्वप्रथम सम्पूर्ण राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज की स्थापना की गई।  1977 में जनता पार्टी ने पंचायत राज में सुधार के लिए अशोक मेहता समिति गठित की जिसने द्विस्तरीय पंचायती राज की सिफारिश की। इससे पूर्व त्रिस्तरीय संगठन अस्तित्व में था। इस समिति की सिफारिश लागू नहीं हुई। 1992 में 73वाँ संविधान संशोधन विधेयक पंचायत राज के लिए तथा 74वाँ नगर निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने के लिए पारित किया गया।

राजस्थान में पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्थाः

राजस्थान देश में पहला राज्य है जिसने पंचायती राज व्यवस्था को अपने यहाँ लागू किया। राजस्थान सरकार ने सन् 1959 में राजस्थान पंचायत समिति और जिला परिषद् अधिनियम' पारित किया। 2 अक्टूबर, 1959 को भारत को भारत के प्रधानमंत्री स्व.पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा नगौर में पंचायती राज व्यवस्था का उद्घाटन किया गया। इस अधिनियम के अनुसार राजस्थान में पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था लागू की गयी। (1) ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, (2) खण्ड स्तर पर पंचायत समिति, तथा (3) जिला स्तर पर जिला परिषद्।
ग्राम पंचायतें राजस्थान में राजस्थान पंचायत अधिनियम' के अन्तर्गत पहले से ही कार्य कर रहीं थी। इस अधिनियम में 1959 व 1992 में संशोधन किए गये जिनके परिणाम स्वरूप ग्राम  पंचायतों की संख्या में काफी वृद्धि हो गयी। राजस्थान पंचायती राज अधिनियम (1994):
संसद द्वारा पारित 73वें संवैधानिक संशोधन के अनुरूप राजस्थान सरकार ने राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 पारित किया। यह अधिनियम 23 अप्रैल, 1994 से लागू किया गया। इसके पूर्व राजस्थान में इस सम्बन्ध में दो अधिनियम प्रचलित थे। (1) राजस्थान पंचायत अधिनियम, 1953 जो पंचायतों के सम्बन्ध में था, और (2) राजस्थान पंचायत समिति तथा जिला परिषद् अधिनियम, 1959 जो पंचायत समितियों एवं जिला परिषदों से सम्बन्धित था। अब इन तीनों स्तर की पंचायती राज संस्थाओं के लिए एक ही अधिनियम है। राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 । इस सम्बन्ध में कुल 124 धाराएँ है। " उक्त अधिनियम में अब तक दो संशोधन किये जा चुके हैं। पहला संशोधन अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण का लाभ देने के उद्देश्य से सितम्बर, 1994 में किया गया, और दूसरा संशोधन दिसम्बर, 1994 में किया गया जिसके अनुसार दो बच्चों से
अधिक होने पर पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव लड़ने पर छूट प्रदान की गयी (27 नवम्बर 1995 तक)। राजस्थान पंचायती राज अधिनियम के अन्तर्गत त्रिस्तरीय संस्थाओं के साथ-साथ ग्रामों में 'ग्राम सभा' का गठन भी किया गया है। इन सबका वर्णन संक्षेप में निम्नलिखित हैं।


पंचायतीराज व्यवस्था के तीन स्तर 

ग्राम सभा

ग्राम सभा और उसकी बैठके अधिनियम की धारा 3 में यह व्यवस्था की गयी हैं कि प्रत्येक पंचायत सर्किल के लिए एक ग्राम सभा होगी जिसमें पंचायत के क्षेत्र के भीतर समाविष्ट गाँव या गाँवों के समूह से सम्बन्धित मतदाता सूची में रजिस्ट्रीकृत सभी व्यक्ति उसके सदस्य होंगे। प्रत्येक वर्ष ग्राम सभा की कम से कम दो बैठकें होंगी पहली वित्तीय वर्ष के प्रथम त्रिमास में तथा दूसरी अन्तिम त्रिमास में होगी। परन्तु ग्राम सभा के सदस्यों की कुल संख्या के एकतिहाई से अधिक सदस्यों के द्वारा लिखित रूप से अपेक्षा किए जाने पर या यदि पंचायत समिति, जिला परिषद् या राज्य सरकार द्वारा अपेक्षित हो तो, ग्राम सभा की बैठक ऐसी अपेक्षा के 30 दिन के अन्दर की जायेगी। वित्तीय वर्ष के प्रथम त्रिमास में की जाने वाली बैठक में पंचायत, ग्राम सभा के समक्ष निम्नलिखित विवरण प्रस्तुत करेगी। (क) गत वर्ष के लेखों का वार्षिक विवरण । (ख) गत वित्तीय वर्ष के प्रस्तावित विकास और अन्य कार्यक्रम तथा (ग) वित्तीय वर्ष के प्रस्तावित विकास और अन्य कार्यक्रम; तथा (घ) पिछली अंकेक्षित रिपोर्ट और उसके लिए दिये गये उत्तर।
वित्तीय वर्ष के अन्तिम त्रिमास में आयोजित बैठक में पंचायत,ग्राम सभा के समक्ष निम्नलिखित विवरण प्रस्तुत करेगी। (क) वर्ष के दौरान उपगत व्यय का विवरण (ख) वर्ष में लिए जाने वाले भौतिक और वित्तीय कार्यक्रम (ग) वित्तीय वर्ष के प्रथम तिमाही में की गयी बैठक में प्रस्तावित
क्रियाकलाप के विभिन्न क्षेत्रों में किये गये ,किन्हीं भी परिवर्तनों से सम्बन्धित प्रस्ताव; और (घ) पंचायत का बजट उपर्युक्त दोनों बैठकों तथा ग्राम सभा की किसी भी अन्य बैठक में भी ऐसा कोई अन्य विषय जिसे पंचायत समिति, जिला परिषद्, राज सरकार या इस निमित्त प्राधिकृत कोई भी अधिकारी रखे जाने की अपेक्षा करे, रखा जायेगा।
ग्राम सभा उसके समक्ष रखे गये विषयों के सम्बन्ध में चर्चा करने के लिए स्वतन्त्र होगी और पंचायत, ग्राम सभा द्वारा दिये गये सुझावों पर, यदि कोई हो, विचार करेगी। सम्बन्धित पंचायत समिति का विकास अधिकारी का विकास अधिकारी के द्वारा नामजद कोई प्रसार अधिकारी ग्राम सभा की सभी बैठकों में उपस्थित होगा। वह ऐसी सभी बैठकों की कार्यवाही का पंचायत के सचिव द्वारा सही-सही अभिलेखन (रिकार्ड) किए जाने के लिए उत्तरदायी होगा। इस प्रकार अंकित की गयी कार्यवाही की एक-एक प्रति नियमानुसार सम्बन्धित अधिकारियों को भेजी जायेगी।

गणपूर्तिः 

अधिनियम की धारा 4 के अनुसार ग्राम सभा की किसी बैठक के लिए गणपूर्ति सदस्यों की कुल संख्या की 1/10 होगी परन्तु गणपूर्ति के अभाव में स्थगित की गयी किसी बैठक के लिए किसी भी गणपति की आवश्यकता नहीं होगी। पीठासीन अधिकारी : धारा 5 में कहा गया है कि ग्राम सभा की बैठक पंचायत के सरपंच के द्वारा अथवा उसकी अनुपस्थिति में पंचायत के उप सरपंच के द्वारा बलायी जायेगी। बैठकों की अध्यक्षता सरपंच के द्वारा अथवा उसकी अनुपस्थिति में उपसरपंच के द्वारा की जायेगी। सरपंच और उप-सरपंच के द्वारा की जायेगी। सरपंच और उप-सरपंच दोनों के अनुपस्थित होने की दशा में ग्राम सभा की बैठक में उपस्थित होने की दशा में ग्राम सभा की बैठक की अध्यक्षता बैठक में उपस्थित सदस्यों के बहुमत द्वारा इस प्रयोजन के लिए निर्वाचित किए गये किसी सदस्य के द्वारा की जायेगी।

प्रस्ताव या संकल्प :

 अधिनियम की धारा 6 में कहा गया है कि ग्राम सभा को इस अधिनियम के अधीन सौंपे गये विषयों से सम्बन्धित कोई प्रस्ताव या संकल्प ग्राम सभा की बैठक में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से पारित किया जाना होगा।

ग्राम पंचायत : गठन, कार्य एवं शक्तियाँ:

राजस्थान में ग्राम पंचायतें पंचायती राज व्यवस्था की आधारशिला और प्रजातान्त्रिक प्रशिक्षण की प्राथमिक संस्थाएँ हैं। पंचायत क्षेत्र में ग्राम पंचायत की स्थिति एक कार्यपालिका के समान हैं।

ग्राम पंचायत की संरचना; 

पंचायती राज अधिनियम के लागू होने से पूर्व राजस्थान में पंचायतों की संख्या 7358 थीं, किन्तु इस अधिनियम के अन्तर्गत पुनर्सीमांकन के परिणामस्वरूप राजस्थान में ग्रामपंचायतों की संख्या 9177 हो गयी है। नये  अधिनियम के अन्तर्गत पंचायतों के संगठन में अनेक परिवर्तन किये गये हैं। अब इनमें सहवृत्त सदस्यों की व्यवस्था को हटाकर अब इनमें अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों, महिलाओं व पिछड़े वर्गों के लोगों के के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी है।

सदस्य संख्या एवं निर्वाचन विधि : 

धारा 12 के अनुसार प्रत्येक पंचायत में एक सरपंच तथा कुछ प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित पंच होंगे। तीन हजार तक की जनसंख्या वाली ग्राम पंचायत में 9 वार्ड मेम्बर या पंच होंगे। जिन ग्राम पंचायतों की जनसंख्या 3 हजार से अधिक होगी, वहाँ से अधिक प्रत्येक एक हजार या उसके भाग पर 2 अतिरिक्त पंच चुने जायेंगे। नये अधिनियम के अनुसार सरपंच व सभी पंचों का चुनाव गुप्त मतदान द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है । उसके लिए 18 वर्ष की आयु प्राप्त या उससे अधिक आयु के प्रत्येक व्यक्ति को वयस्क माना गया है। निर्वाचन के समय प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को वार्डों में विभक्त कर दिया जाता है। प्रत्येक वार्ड से एक सदस्य अथवा पंच ही चुना जाता है।

स्थानों का आरक्षण : 

धारा 15 के अनुसार (1) प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले स्थान अनुसूचित  जातियों, अनुसूचित जन जातियों और यथास्थिति पिछड़े वर्गा (OBC) के व्यक्तियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपातम स्थान आरक्षित हगि। (2) उक्त आरक्षित स्थार्मा की कुल संख्या के राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 सशाधन अधिनियम 2009 द्वारा महिलाओं के लिए इन सम्थाओं में 50 प्रतिशत आरक्षण किया गया है। अनुसूचित जातियां, अनुभूचित जन जातियों या, यथास्थिति पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित किये जायेंगे। (3) प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के 50 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए (जिनमें अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या सम्मिलित हैं) आरक्षित किये जायेंगे। लेकिन न्यायालय ने अभी इस आरक्षण पर रोक लगा रखी है।

पंच के रूप में निर्वाचन के लिए अहर्ताएँ : 

अधिनियम की धारा 19 के अनुसार “किसी पंचायती राज संस्था के मतदाताओं की सूची में मतदाता के रूप में रजिस्टर्ड प्रत्येक व्यक्ति ग्राम पंचायत के पंच के रूप में निर्वाचन के लिए योग्य होगा, यदि ऐसा व्यक्ति"
राजस्थान राज्य के विधानमण्डल के निर्वाचन के प्रयोजनों के लिए उस समय लागू किसी विधि द्वारा अयोग्य नहीं है।

किसी स्थानीय प्राधिकरण के अधीन कोई वैतनिक पूर्णकालिक या अंशकालिक पद धारण नहीं करता है।
अनैतिकता युक्त दुराचार के कारण राज्य सरकार की सेवा से  पदच्युत नहीं किया गया है और लोक सेवा में नौकरी के लिए अयोग्य घोषित नहीं किया गया हैं।
किसी भी पंचायती राज संस्था के अधीन कोई भी वैतनिक पद या लाभ का पद धारण नहीं करता है।
कुष्ठ रोग से पीड़ित नहीं है तथा अन्य किसी शारीरिक या मानसिक दोष या रोग से ग्रस्त नहीं है।
अनैतिकता से युक्त किसी अपराध के लिए किसी सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी नहीं ठहराया गया है।
धारा 38 के अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा उसको किसी आरोप में पदमुक्त नहीं किया गया है।
सम्बन्धित पंचायती राज संस्था द्वारा अधिरोपित किसी भी कर या फीस की रकम उसके लिए मांग नोटिस प्रस्तुत किए जाने की तिथि से दो महीने तक भी अदा नहीं की है।
सम्बन्धित पंचायती राज संस्था की ओर से या उसके विरुद्ध वकील के रूप में नियोजित नहीं है।
राजस्थान मृत्यु भोज निवारण अधिनियम, 1960 के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के लिए दोषी नहीं उहराया गया है।

दो से अधिक बच्चों वाला नहीं है; किन्तु अधिनियम में संशोधन करके इस सम्बन्ध में 27 नवम्बर, 1995 तक के लिए छूट प्रदान कर दी गयी थी। उसने 21 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है।

सरपंच और उप-सरपंच का निर्वाचन : 

अधिनियम की धारा 22 के अनुसार प्रत्येक पंचायत में एक सरपंच होता है जो पंच के रूप में निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो । पंचों की भाति वह भी सम्पूर्ण सर्किल के निर्वाचकों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से गुप्त मतदान द्वारा निर्वाचित किया जाता है। यदि किसी भी कारण से मृत्यु हो जाने, त्यागपत्र देने या अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाने पर सरपंच का पद रिक्त हो जाता है तो 6 महीने के अन्दर उपचुनाव द्वारा उस पद को भरा जाता है । इस बीच की कालावधि के लिए अर्थात् निर्वाचन द्वारा पद भरे जाने तक,यदि राज्य सरकार आवश्यक समझती है तो किसी व्यक्ति को सरपंच पद पर नियुक्त कर सकेगी।
धारा 27 के अनुसार प्रत्येक पंचायत में एक उप-सरपंच होगा। उप-सरपंच पद के लिए केवल निर्वाचित पंच ही उम्मीदवार हो सकता है। पंचायत के समस्त सदस्यों द्वारा इसी प्रयोजन से बुलायी गयी बैठक में, बहुमत से उप-सरपंच का निर्वाचन किया जायेगा।

सरंपच की शक्तियाँ, कृत्य और कर्तव्य : 

सरपंच की कार्यक्षमता, दायित्व बोध उसकी महत्वपूर्ण भूमिका के सफल प्रयोग पर ही पंचायत की सफलता तथा विकास कार्यों की क्रियान्विति निर्भर करती है। अधिनियम की धारा 32 में सरपंच की शक्तियों, कृत्यों तथा कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है, जो इस प्रकार है।
1. सरपंच ग्राम सभा की बैठक बुलाने के लिए उत्तरदायी होगा और ऐसी बैठकों की अध्यक्षता करेगा।
2. वह पंचायत की बैठक बुलाने के लिए उत्तरदायी होगा और ऐसी बैठकों की अध्यक्षता करेगा और उसकी कार्यवाही का संचालन करेगा।
3. पंचायत के अभिलेख के रख रखाव के लिए वह उत्तरदायी होगा।
4. पंचायत के अधिकारियों तथा कर्मचारियों के कार्यों पर प्रशासनिक पर्यवेक्षण और नियन्त्रण रखेगा।
5. वह ऐसे कृत्यों का पालन या ऐसे कर्तव्यों का निर्वहन करेगा जो पंचायतों द्वारा किया जाना अपेक्षित है अथवा राज्य सरकार उसे इनके लिए पबन्द करें।
6. वह राज्य सरकार को या पंचायतों के प्रभारी अधिकारी को समय-समय पर आवश्यक रिपोर्ट, विवरणियाँ और अभिलेख प्रस्तुत करेगा; यदि।
अविश्वास का प्रस्ताव:अधिनियम की धारा 37 के अनुसार सरपंच अथवा उप-सरपंच के विरुद्ध पंचायत के कम से कम से कम एक तिहाई निर्वाचित सदस्यों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव का लिखित नोटिस सक्षम अधिकारी को व्यक्तिशः दिया जायेगा। सक्षम अधिकारी इस नोटिस पर विचार करने के लिए एक माह के अन्दर पंचायत की बैठक बुलायेगा। बैठक में यदि पंचायत के निर्वाचित सदस्य अपने 3/4 तीन चौथाई बहुमत से प्रस्ताव का समर्थन कर देते हैं। (संशोधन अधिनियम 2008-09) तो उस दिन सरपंच या उप-सरपंच (जिसके विरुद्ध अविश्वास प्रस्तावित किया गया है) अपना पद रिक्त कर देगा। यदि गणपूर्ति के अभाव के कारण बैठक नहीं की जा सकी, तो ऐसी स्थिति में उसी सरपंच/उप-सरपंच के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का अगला नोटिस एक वर्ष के बाद ही प्रस्तावित किया जा सकेगा। इस धारा के अधीन अविश्वास प्रस्ताव का कोई भी नोटिस किसी सरपंच या उप-सरपंच के पद ग्रहण करने के दो वर्ष के भीतर तथा कार्यकाल के अंतिम वर्ष में प्रस्ताव नहीं दिया जा सकता है।
सरपंच/उप-सरपंच स्वयं भी त्यागपत्र देकर पदमुक्त हो सकते हैं तथा धारा 38 के अनुसार राज्य सरकार सुनवाई का अवसर देने और ऐसी जांच करने के पश्चात् जो आवश्यक समझे, सरपंच/ उप-सरपंच को पद मुक्त कर सकती है।

पंचायत का कार्यकाल :

 प्रत्येक पंचायत का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा। यदि पंचायत को पहले भंग कर दिया गया है, तो उसके विघटन की तिथि से 6 माह के अन्दर ही नयीं पंचायत के चुनाव कराने होंगे। यदि विघटित पंचायत की कार्य अवधि पूरा होने में केवल 6 माह से कम का समय ही शेष रह गया है तो शेष अवधि के लिए उसके चुनाव करवाना आवश्यक नहीं होगा। ऐसी पंचायत जो पूर्व पंचायत के विघटन के फलस्वरूप गठित की गयीं हों, कालावधि केवल शेष भाग के लिए बनी रहेगी।

  पंचायत की बैठक : 

अधिनियम की धारा 45 के अनुसार (1) पंचायत की बैठक 15 दिन में कम से कम एक बार पंचायत के कार्यालय पर होगी। बैठक की तिथि व समय सरपंच तय करेगा। आवश्यकतानुसार बैठक ज्यादा बार भी बुलाई जा सकती है। (2) सरपंच जब कभी उचित समझे, बैठक बुला सकेगा और कुल संख्या के कम से कम एक तिहाई सदस्यों के लिखित निवेदन पर उसे 15 दिन के अन्दर आवश्यक रूप से बैठक बुलानी होगी। साधारण बैठक के लिए सात दिन का नोटिस और विशेष बैठक के लिए तीन दिन का नोटिस देना होगा।
  राजस्थान सरकार ने चार बैठकों का प्रावधान किया है। 

गणपूर्ति : 

धारा 48 के अनुसार पंचायत की बैठक के लिए गणपूर्ति सदस्यों की कुल संख्या का एक-तिहाई होगी जिसके अभाव में बैठक स्थगित कर दी जायेगी।
  कर लगाने का अधिकार : 
अधिनियम की धारा 65 में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त बनाये गये नियमों या आदेशों के अधीन कोई पंचायत निम्नलिखित कोई एक या अधिक कर लगा सकेगी। व्यक्तियों के स्वामित्व वाले भवनों पर कर। पंचायत क्षेत्र के भीतर उपभोग या उपयोग के लिए लाए गये पशुओं या माल पर चुंगी। वाहन कर तीर्थ-यात्री कर पीने के पानी का प्रबन्ध करने के लिए कर ,वाणिज्यिक फसलों पर कर राज्य सरकार द्वारा स्वीकत कोई अन्य कर आदि।
  जुर्माना लगाने का अधिकार : 
यदि पंचायत को यह विश्वास हो जाये कि किसी व्यक्ति ने पंचायत के आदेश की अवज्ञा की है, तो वह उस व्यक्ति पर 200 रुपये तक जुर्माना कर सकती है। जुर्माना निश्चित अवधि में अदा न करने पर वह दस रुपये प्रतिदिन के हिसाब से उस पर अतिरिक्त दण्ड लगा सकती

  सचिव की नियुक्ति तथा उसके कर्त्तव्य : 

प्रत्येक पंचायत के लिए एक सचिव होगा जिसकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जायेगी। पंचायत, पंचायत समिति की पूर्व अनुमति से ऐसे कर्मचारियों को, जो उसके कर्तव्यों के पालन के लिए आवश्यक है, नियुक्ति कर सकेगी। पंचायत-सचिव सरपंच के नियन्त्रण में रहते हुए निम्नलिखित कर्तव्यों का पालन करेगा। (क) पंचायत के अभिलेख और रजिस्टर अपनी निगरानी में रखना। (ख) पंचायत के निमित्त प्राप्त धन राशियों के लिए अपने हस्ताक्षर से रसीदें जारी करना। (ग) पंचायत कोष का लेखा रखना। (घ) पंचायत कोष की सुरक्षा की व्यवस्था करना। पंचायत के समस्त विवरण और रिपोर्ट तैयार करना। (च) पंचायत द्वारा स्वीकृत पंचायत कोष से व्यय करना । (छ) ऐसे अन्य कृत्य और कर्तव्य करना जो उसे सौंपे जाएँ आदि।
पंचायतों के आदेशों के विरुद्ध अपील । अधिनियम की "धारा 61 में यह प्रावधान है कि (1) पंचायत के किसी आदेश या निर्देश से व्यथित कोई व्यक्ति उसके विरुद्ध अपील पंचायत समिति में कर सकेगा। (2) पंचायत समिति की स्थाई समिति उस अपील की सुनवाई करेगी और स्थायी समिति का निर्णय पंचायत समिति का ही निर्णय समझा जायेगा।

पंचायत समितिः

पंचायत समिति की संरचना:

राजस्थान पंचायती राज अधिनियम द्वारा इसके संगठन एवं शक्तियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गये है।
धारा 13 के अनुसार पंचायत समिति के सदस्य प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से गुप्त मतदान विधि द्वारा प्रत्यक्ष द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होगें। राज्य सरकार प्रत्येक पंचायत समिति क्षेत्र को एकल सदस्य प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित करेगी कि प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या, जहाँ तक सम्भव हो, सम्पूर्ण पंचायत समिति क्षेत्र में समान हो। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक सदस्य चुना जायेगा। धारा 13 (2) के अनुसार एक लाख तक की जनसंख्या वाली पंचायत समिति में सदस्यों की संख्या कम से कम 15 होगी। एक लाख से अधिक जन संख्या होने पर प्रति 15 हजार या उसके किसी भाग के लिए 2 अतिरिक्त सदस्य निर्वाचित होंगे। उदाहरण के लिए यदि किसी पंचायत समिति की जनसंख्या 1 लाख 35 हजार है, तो एक लाख पर 15 सदस्य, पहले 15 हजार पर 2 सदस्य, दूसरे 15 हजार पर 2 सदस्य तथा शेष 5 हजार पर 2 सदस्य, इस प्रकार पचायत समिति में कुल 21 सदस्य होंगे। उस क्षेत्र के विधायक भी पंचायत समिति के सदस्य होंगे। पहले पंचायतों के सरपच पंचायत समिति के सदस्य हुआ करते थे, किन्तु नये अधिनियम में सभी सदस्य प्रत्यक्षतः निर्वाचित होगे। राजस्थान सरकार राज्य में पंचायती राज संस्थाओं को और सुदृढ तथा अधिकार सम्पन्न बनाने एवं उनमें विद्यमान खामियों को दूर करने के लिए पंचायत राज अधिनियम सहित विभिन्न नियमकानूनों में संशोधन करने पर विचार कर रही है। सरकार चाहती है कि पंचायत समितियों में सभी सरपंचों को और जिला परिषदों में सभी प्रधानों को सदस्य बनाया जाए तथा उन्हें मताधिकार भी प्रदान किया जाए।

स्थानों का आरक्षण: 

धारा 15 के अनुसार (1) प्रत्येक पंचायत समिति में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थान अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों और यथा स्थिति पिछड़े वर्गों (OBC) के व्यक्तियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित किये जायेंगे। (2) उक्त आरक्षित स्थानों की कुल संख्या के 50 प्रतिशत स्थान अनुसूचित जातियों, अनुसूचित 1 जन जातियों या यथास्थिति पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए। आरक्षित किये जायेंगे। लेकिन न्यायालय ने 50 प्रतिशत आरक्षण पर अभी रोक लगा रखी है। (3) प्रत्येक पंचायत समिति में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या का 33 प्रतिशत स्थान महिलाओं के लिए (जिनमें अनुसूचित जातियों/ अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या सम्मिलित है।) आरक्षित किये जायेंगे और ऐसे स्थान पंचायत समिति में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लिए विधि द्वारा निर्धारित रीति से आवंटित किए जायेंगे।
पंचायत समिति के सदस्य के रूप में निर्वाचन के लिए अर्हताएँ : अधिनियम की धारा 19 के अनुसार “किसी पंचायती राज संस्था के मतदाताओं की सूची में मतदाता के रूप में रजिस्ट्रीकृत प्रत्येक व्यक्ति पंचायत समिति के सदस्य के रूप में निर्वाचन के लिए योग्य होगा।" इनमें जिन योग्यताओं का उल्लेख किया गया है, उनका वर्णन ग्राम पंचायत की संरचना में 'अर्हताएँ शीर्षक के अन्तर्गत किया जा चुका है। नये अधिनियम में पंच और पंचायत समिति के सदस्य दोनों के लिए समान योग्यताएँ निर्धारित की गयी है।

कार्यकाल : 

धारा 17 के अनुसार पंचायत समिति का कार्यकाल 5 वर्ष होगा। यदि पंचायत समिति को उसकी कार्याविधि पूरी होने से पहले ही भंग कर दिया गया है, तो उसके विघटन की तिथि से 6 माह के अन्दर ही नयी पंचायत समिति के चुनाव कराने होंगे। यदि विघटित पंचायत समिति की कार्याविधि पूरी होने में केवल 6 माह से कम का समय ही शेष रह गया हो, तो शेष, अवधि के
लिए उसके चुनाव करवाना आवश्यक नहीं होगा। ऐसी पंचायत समिति, जो पूर्व पंचायत समिति के विघटन के फलस्वरूप गठित की गयी हो, कालावधि के केवल शेष भाग के लिए बनी रहेगी। 

प्रधान और उप-प्रधान का निर्वाचन : 

अधिनियम की धारा 28 में यह व्यवस्था की गयी है कि पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्य यथाशीघ्र अपने में से दो सदस्यों को क्रमशः प्रधान और उप-प्रधान पद के लिए चुनेंगे । जब प्रधान या उप-प्रधान का पद किसी आकस्मिक कारण से रिक्त हो, तब पंचायत समिति के सदस्य अपने में से ही किसी का चुनाव प्रधान या उप प्रधान (जैसी स्थिति हो) पद के लिए करेंगे; परन्तु यदि कोई रिक्ति एक माह से कम समय के लिए हो तो कोई भी निर्वाचन नहीं कराया जायेगा। 

प्रधान की शक्तियाँ, कत्य और कर्त्तव्य : 

अधिनियम की धारा 33 में प्रधान की शक्तियों, कृत्यों और कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है, जो निम्नलिखित हैं 1. पंचायत समिति की बैठकें बुलायेगा, उनकी अध्यक्षता करेगा और उनका संचालन करेगा। 2. पंचायत समिति के सभी अभिलेखों की जाँच कर सकेगा। 3. इस अधिनियम द्वारा उसको सौंप गये सभी कर्तव्यों का निर्वहन करेगा और ऐसे कृत्यों का पालन करेगा जो सरकार द्वारा समय-समय पर उसको सौंपे जाएँ। 4. पंचायतों में प्रेरणा और उत्साह को प्रोत्साहन देगा और उनके द्वारा हाथ में ली गयी ६ योजनाओं और उत्पादन कार्यक्रमों में उनका मार्ग-दर्शन करेगा, उनको सहयोग और सहायता देगा। 5. पंचायत समिति के या उसकी स्थायी समितियों के प्रस्तावों या निर्णयों के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए विकास अधिकारी पर पर्यवेक्षण और नियन्त्रण रखेगा। 6. पंचायत समिति के वित्तीय और प्रशासनिक मामलों पर निगरानी रखेगा; 7. पंचायत समिति क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होने वालों को तुरन्त सहायता उपलब्ध कराए जाने के उद्देश्य से, विकास अधिकारी के परामर्श से, किसी एक वर्ष में 25 हजार रुपए की कुल राशि तक स्वीकृति देने की उसे आपात शक्ति प्राप्त होगी। किन्तु पंचायत समिति की आगामी बैठक में उसके अनुमोदन के लिए उसे प्रस्तुत किया जायेगा। 

अविश्वास प्रस्ताव : 

अधिनियम की धारा 37 में यह प्रावधान है कि पंचायत समिति के प्रधान/उप-प्रधान के विरुद्ध समिति के कम से कम एक-तिहाई निर्वाचित सदस्यों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। अविश्वास प्रस्ताव का लिखित नोटिस सक्षम अधिकारी को व्यक्तिशः दिया जायेगा। सक्षम अधिकारी उस नोटिस पर विचार करने के लिए एक माह के अन्दर पंचायत समिति की बैठक बुलायेगा। बैठक में समिति के निर्वाचित सदस्य यदि अपने तीन-चौथाई बहुमत से उस प्रस्ताव का समर्थ कर देते हैं, तो उस दिन से प्रधान या उप-प्रधान (जिसके विरुद्ध अविश्वास विश्वास रखा गया है) अपना पद रिक्त कर देगा।
यदि प्रस्ताव पूर्वोक्त रूप से पारित नहीं हो या यदि गणपूर्ति के अभाव के कारण बैठक नहीं की जा सकी हो, तो उसी प्रधान/ उप-प्रधान के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का अगला नोटिस एक वर्ष के बाद ही प्रस्तावित किया जा सकेगा। इस धारा के अन्तर्गत अविश्वास प्रस्ताव का कोई भी नोटिस किसी प्रधान या उपप्रधान के विरुद्ध पद ग्रहण करने के दो वर्ष के भीतर तथा चुनाव के अंतिम वर्ष में नहीं लाया जा सकता है। 
प्रधान/उप-प्रधान स्वयं भी त्यागपत्र देकर पदमुक्त हो सकते है तथा धारा 38 के अनुसार राज्य सरकार भी सुनाई का अवसर देकर और ऐसी जांच के पश्चात. जो आवश्यक समझ, प्रधान/ उप-प्रधान को पद मुक्त कर सकती है। 

पंचायत समिति की बैठकें :

 धारा 40 में कहा गया है । (1) पंचायत समिति एक माह में कम से कम एक बार बैठक आयोजित करेगी (2) पंचायत समिति की प्रत्येक बैठक सामान्यतः पंचायत समिति के मुख्यालय पर आयोजित की जायेगा; (3) प्रधान जब कभी आवश्यक समझे, विशेष बैठक बुला सकेगा और सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम एक-तिहाई सदस्यों के लिखित में देने पर 15 दिन के भीतर समिति की बैठक बुलानी होगी; (4) सामान्य बैठक के लिए 10 दिन का तथा विशेष बैठक के लिए सात दिन का नोटिस सदस्यों को भेजा जायेगा। 

गणपूर्ति : 

धारा 48 के अनुसार पंचायत समिति की बैठक के लिए गणपूर्ति सदस्यों की कुल संख्या का एक-तिहाई होगी जिसके अभाव में बैठक स्थगित कर दी जायेगी। समिति की प्रत्येक बैठक की कार्यवाही का पूरा विवरण रखा जायेगा।

जिला परिषद


पंचायती राज अधिनियम की धारा 11 के अनुसार प्रत्येक जिले के लिए एक जिला परिषद् होगी जो सम्पूर्ण जिले पर अधिकारिता रखेगी। 

जिला परिषद की संरचना

धारा 14 में कहा गया है कि जिला परिषद में सदस्य होंगे (क) प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्य, (ख) लोक सभा और राज्य विधान सभा के सभी सदस्य, जिनमें जिला परिषद् क्षेत्र पूर्णतः या अंशतः समाविष्ट है, और (ग) जिला परिषद् क्षेत्र के भीतर निर्वाचर्को के रूप में रजिस्ट्रीकृत राज्य सभा के सभी सदस्य । खण्ड 'ख' और 'ग' में निर्दिष्ट सदस्यों को, जिला-प्रमुख या उप-प्रमुख के निर्वाचन और हटाये जाने के अलावा, जिला परिषद् की सभी बैठकों में मत देने का अधिकार होगा, और राज्य सरकार प्रत्येक जिला परिषद् क्षेत्र को एकल सदस्य प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में इस प्रकार विभाजित करेगी कि प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या, जहाँ तक हो सके, सम्पूर्ण जिला परिषद् क्षेत्र में समान हो। चार लाग्न तक की जनसंख्या वाले किसी परिषद् क्षेत्र में सदस्यों की संख्या 17 होगी ।4 लाख अधिक होने पर  हर एक लाख या उसके भाग पर 2 अतिरिक्त सदस्य होंगे । सभी सदस्य गुप्त मतदान विधि से वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होंगे। वर्तमान में राजस्थान में जिला परिषदों की संख्या 33 है। 

स्थानों का आरक्षण : 

(1) अन्य पंचायती राज संस्थाओं के समान प्रत्येक जिला परिषद् में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थान अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों और यथास्थिति पिछड़े वर्गों (OBC) के व्यक्तियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में स्थान आरक्षित किए जायेंगे। (2) उक्त आरक्षित स्थानों की कुल संख्या 50% स्थान अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों या यथास्थिति, पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित किये जायेंगे। लेकिन न्यायालय ने 50% आरक्षण पर अभी रोक लगा रखी है। (3) प्रत्येक पचायत समिति में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के 33% स्थान महिलाओं के लिए (जिनमें अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जन जातियों और पिछड़े वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या सम्मिलित है।) आरक्षित किये जायेंगे, ऐसे स्थान जिला परिषद् में विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के लिए विधि द्वारा निर्धारित रीति से आवंटित किये जायेंगे। 
योग्यताः जिला परिषद् के चुनाव में खड़े होने वाले प्रत्याशियों के लिए वही अहर्ताएँ आवश्यक होंगी जिनका वर्णन ग्राम पंचायत की संरचना में अहर्ताएँ' शीर्ष के अंतर्गत किया जा चुका है। नये अधिनियम में सभी पंचायती राज संस्थाओं में प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होने वाले सदस्यों के लिए समान अहर्ताएँ रखी गयी है। 

कार्यकाल : 

धारा 17 के अनुसार जिला परिषद् का कार्यकाल 5 वर्ष होगा। सभी पंचायती राज संस्थाओं में इस धारा के अनुसार निर्धारित अवधि से पहले विघटित किये जाने की स्थिति में नये चुनाव कराये जाने की प्रक्रिया समान निश्चित की गयी है। 

प्रमुख और उप-प्रमुख का निर्वाचन : 

अधिनियम की धारा 29 में कहा गया है कि जिला परिषद् के निर्वाचित सदस्य यथाशीघ्र अपने में से किन्हीं दो सदस्यों को, क्रमशः उसके प्रमुखऔर उप-प्रमुख पद के लिए चुनेंगे। जब कभी प्रमुख या उपप्रमुख का पद आकस्मिक ढंग से रिक्त हो तब जिला परिषद् के सदस्य अपने में से किसी को प्रमुख या उप-प्रमुख चुनेंगे। किन्तु यदि ऐसी रिक्त एक माह से कम की अवधि के लिए है तो कोई भी निर्वाचन नहीं कराया जायेगा। 

जिला प्रमुख की शक्तियाँ, कृत्य और कर्त्तव्य : 

धारा 35 में कहा गया है किप्रमुख जिला परिषद् की बैठकें बुलायेगा, उनकी अध्यक्षता करेगा और उनका संचालन करेगा। वह मुख्य कार्यपालक अधिकारी (C.E.O.) और उसके माध्यम से जिला परिषद् के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों पर प्रशासनिक पर्यवेक्षण और नियन्त्रण रखेगा। और उनके रिकार्ड की जाँच कर सकेगा।
जिला परिषद के वित्तीय और प्रशासनिक मामलों पर पर्यवेक्षण रखेगा। वह जिले में प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होने वालों को तुरन्त सहायता उपलब्ध कराने हेतु एक वर्ष में एक लाख रुपए तक की कुल राशि स्वीकृत कर सकेगा। पंचायतों के योजनाओं और उत्पादन कार्यक्रमों में उनका मार्ग दर्शन करेगा और उनको सहयोग व सहायता करेगा। 
वह समय-समय पर पंचायत समितियों का निरीक्षण कर सकेगा,उनके प्रधानों, विकास अधिकारियों और उनके सदस्यों को सलाह व दिशा निर्देश दे सकेगा। (7) वह प्रयत्न करेगा कि पंचायतों और पंचायत समितियों के बीच अच्छे सम्बन्ध विकसित हों जिससे उत्पादन कार्यक्रमों में बढ़ोत्तरी
हो सके। प्रत्येक वर्ष की समाप्ति पर उस वर्ष के दौरान मुख्य कार्यपालक अधिकारी के कार्य के बारे में एक रिपोर्ट निदेशक, पंचायती राज और ग्रामीण विकास को भेजेगा। राज्य सरकार द्वारा लिये गये निर्णय के अनुसार 30 जनवरी,1999 से जिला प्रमुखों को जिला ग्रामीण विकास अभिकरण, (DRDA) का अध्यक्ष बनाया गया है। पुरानी व्यवस्था में अभिकरण के अध्यक्ष जिला कलक्टर होते थे, जो नई व्यवस्था ।
में कार्यपालक निदेशक के रूप में कार्य करेगें। प्रमुख की अनुपस्थिति में उप प्रमुख उसकी शक्तियों और कर्तव्यों का
निष्पादन करेगा। । 

अविश्वास प्रस्तावः

 अधिनियम की धारा 37 में यह प्रावधान है। जिला परिषद् के प्रमुख उप प्रमुख के विरुद्ध परिषद् के कम से कम एक-तिहाई निर्वाचित सदस्यों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव का लिखित नोटिस सक्षम अधिकारी को व्यक्तिशः दिया जायेगा।
सक्षम अधिकारी उस नोटिस पर विचार करने के लिए एक माह के अन्दर जिला परिषद् की बैठक बुलायेगा। बैठक में परिषद् के निर्वाचित सदस्य यदि अपने तीन चौथाई 3/4 बहुमत से उस प्रस्ताव का समर्थन कर देते हैं तो उस दिन से ही प्रमुख या उपप्रमुख (जिसके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव रखा गया है) अपना पद रिक्त कर देगा। यदि प्रस्ताव पूर्वोक्त रूप से पारित नहीं हो या यदि गणपूर्ति के अभाव के कारण बैठक नहीं की जा सकती हो तो उसी प्रमुख/ उप प्रमुख के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का अगला नोटिस एक वर्ष से पहले प्रस्तावित नहीं किया जा सकेगा। इस धारा के अन्तर्गत अविश्वास प्रस्ताव का कोई भी नोटिस प्रमुख/उपप्रमुख के विरुद्ध पद ग्रहण करने के दो वर्ष के भीतर नहीं दिया जा सकेगा। तथा चुनाव के अंतिम वर्ष में भी नहीं। प्रमुख उप-प्रमुख स्वयं भी त्यागपत्र देकर पदमुक्त हो सकते हैं।  तथा धारा 38 के अनुसार राज्य सरकार भी सुनवाई का अवसर देकर और ऐसी जाँच के पश्चात्, जो आवश्यक समझे, प्रमुख/ उप-प्रमुख को पद से हटा सकती है। 

जिला परिषद् की बैठकें : 

जिला परिषद् की बैठक हर तीन महीने में कम से कम एक बार अवश्य आयोजित की जायेगी। प्रमुख भी जब कभी उचित समझे, परिषद् की बैठक बुला सकेगा और जब जिला परिषद् से कम से कम एक-तिहाई सदस्यों द्वारा लिखित में बैठक बुलाने को कहा जाए तो दस दिन के भीतरभीतर ऐसी बैठक बुलायी जायेगी, जिसमें विफल रहने पर सक्षम प्राधिकारी जिला परिषद् के सदस्यों की सात दिन के नोटिस के पश्चात् बैठक बुला सकेगा।

 गणपूर्ति : 

धारा 48 के अनुसार जिला परिषद् की बैठक के लिए गणपूर्ति सदस्यों की कुल संख्या का एक-तिहाई होगी जिसके अभाव में बैठक स्थगित कर दी जायेगी। परिषद् की प्रत्येक बैठक की कार्यवाही का पूरा विवरण रखा जायेगा।

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