मूल कर्तव्य
मूल अधिकार व कर्त्तव्य में विशिष्ट सम्बन्ध है। अधिकार व कर्त्तव्य एक दूसरे के पूरक हैं एक व्यक्ति के कर्त्तव्य दूसरे व्यक्ति के अधिकार बन जाते हैं । अतः कर्तव्यों की अनुपस्थिति में अधिकारों की कल्पना ही संभव नहीं। संविधान में 1950 में भारतीय नागरिकों के लिए सिर्फ मूल अधिकारों का ही उल्लेख किया गया था, मूल कर्त्तव्यों का नहीं। लेकिन 1976 में स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश पर 42 वा संविधान संशोधन करते हुए यह अनुभव किया गया कि नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों का उल्लेख किया जाना चाहिए। अतः संविधान के भाग 'चार क' में 10 कर्त्तव्यों को जोड़ा गया। इसमें उल्लेख किया गया कि भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह -
1.संविधान का पालन करे तथा उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का आदर करे।
2. स्वतन्त्रता के लिये हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हदय में संजोये रखे व उनका पालन करे।
3. भारत की प्रभुता, एकता व अखण्डता को अक्षुण्ण रखे।
4. देश की रक्षा करे और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा, प्रदेश या वर्ग पर आधारित भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हो।
6. हमारी समन्वित संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अन्तर्गत वन,झील, नदी व वन्य जीव है, की रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणी मात्र के प्रति दयाभाव रखे।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
9. सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर
रहे।
10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्र में
उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुये प्रगति व उत्कर्ष की नई ऊँचाइयों को छू ले।
11.86वें संवैधानिक, संशोधन (2002) के आधार पर
(क) को संशोधित करते हुए 11वां मूल कर्तव्य जोड़ा गया है कि माता पिता या संरक्षक अपने 6से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करवावें।
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