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Sunday, March 15, 2020

राज्य के नीति निदेशक तत्व

 राज्य के नीति निदेशक तत्व 


Directive Principles of State Policy
Directive Principles of State Policy




संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों की परिभाषा सहित अन्य प्रावधानों की व्यवस्था की गई है। ये नीति निर्देशक तत्त्व नागरिकों की शिक्षा स्वास्थ्य, सामाजिक समता तथा राज्य के लिये अनुसरणीय नीति के विश्लेषण से सम्बन्धित हैं।
36. राज्य की परिभाषा जो कि अनुच्छेद 12 में निहित है।
37. नीति निदेशक तत्व वाद योग्य नहीं हैं।
38. राज्य इस प्रकार की सामाजिक व्यवस्था स्थापित करेगा जिससे कि लोक कल्याण हो तथा सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय को प्राप्त किया जा सके। 

आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्व


  संविधान निर्माताओं का उद्देश्य भारत में एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु संविधान में अनेक निर्देशक तत्त्वों की
व्यवस्था की गयी है। 
1. संविधान के अनुच्छेद 39 (सबसे महत्वपूर्ण )के अनुसार राज्य अपनी नीति इस प्रकार निर्धारित करेगा जिससे कि पुरुष और स्त्री सभी नागरिकों को समान रूप जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकारह समुदाय के भौतिक साधनों का स्वामित्व और वित इस प्रकार बंटा हो जिससे सामूहिक हित का सवाल रूप से साधन हो; सम्पत्ति और उत्पादन के साधनों का इस प्रकार केन्द्रीकरण न हो कि सार्वजनिक हित को किसी प्रकार की बाधा पहुँचे स्त्री और पुरुष दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिले; श्रमिक पुरुषों और स्त्रियों के स्वास्थ्य तथा शक्ति एव बालकों की बाल्यावस्था अवस्था का आर्थिक दुरूपयोग न हो; राज्य के द्वारा बच्चों के स्वस्थ रूप से विकास के लिए अवसर और सुविधाएँ प्रदान की जायेगी, उन्हें स्वतन्त्रता और सम्मान की स्थिति प्राप्त होगी तथा बच्चों और युवकों की शोषण से तथा नैतिक और आर्थिक परित्याग से रक्षा की जायेगी।2.अनुच्छेद 41 में कहा गया है कि राज्य अपने विकास और0आर्थिक सामर्थ्य की सीमाओं के अन्तर्गत इस बात का प्रयास करेगा कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्तानुसार रोजगार पा सके, शिक्षा प्राप्त कर सके एवं बेकारी, वृद्धावस्था, बीमारी तथा अंगहीन होने की दशा में सार्वजनिक सहायता प्राप्त कर सके। 
3.अनुच्छेद 42 में कहा गया है कि राज्य काम के लिए यथोचित और मानवोचित दशाओं का प्रबन्ध करेगा तथा ऐसी व्यवस्था करेगा जिससे स्त्रियों को प्रसूतावस्था में कार्य न करना पड़े।
4. अनुच्छेद 43 में कहा गया है कि राज्य कानून द्वारा अथवा आर्थिक संगठनों द्वारा अथवा अन्य किसी प्रकार से ऐसी व्यवस्था करेगा जिससे कृषि, उद्योगों अथवा अन्य क्षेत्रों में लगे हुए सभी श्रमिकों को अपने जीवन निर्वाह के लिये यथोचित वेतन मिल सके, उनका जीवन स्तर ऊँचा उठ सके, वे अपने अवकाश के समय का पूरा उपयोग कर सकें तथा उन्हें सामाजिक और सांस्कृतिक उत्रति के लिए सुअवसर प्राप्त हो सकें। 
5. इसी अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि राज्य ग्रामीण) क्षेत्रों में व्यक्तिगत अथवा सहकारी आधार पर कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन देने का प्रयत्न करेगा। 42 वें संविधान संशोधन द्वारा आर्थिक सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्त्वों में दो तत्त्व और जोड़ दिये गये है कमजोर वर्गों के लिये निःशुल्क कानूनी सहायता 
औद्योगिक संस्थाओं के प्रबन्धन में कर्मचारियों की भागीदारी बनाने की व्यवस्था। 
6.नवीन अनुच्छेद 43क के अनुसार राज्य उचित व्यवस्थापन अथवा अन्य किसी प्रकार से औद्योगिक संस्थानों अथवा अन्य ऐसे ही संगठनों के प्रबन्ध में श्रमिकों को भागीदार बनाने के लिए कदम उठायेगा।
7.अनुच्छेद 48 के अनुसार राज्य कषि एवं पशुपालन का आधुनिक तथा वैज्ञानिक ढंग से संचालन करेगा एक गाय, बछड़ों तथा अन्य दूध देने वाले व भार ढोने वाल पशुओं की नस्ल सुधारने और उनके वध को रोकने का प्रयत्न करेगा। 8.44वें सविधान संशोधन (अप्रेल 1979) द्वारा एक और तत्त्व जोडा गया कि राज्य विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाल और विभिन्न व्यवसायों में लगे हए व्यक्तियों के समुदाया के बीच विद्यमान आय, सामाजिक स्तर, सुविधाओं आर अवसरों सम्बन्धी भेदभाव को भी कम से कम करने का प्रयत्न करेगा। 

सामाजिक सुरक्षा और शिक्षा सम्बन्धी निर्देशक तत्त्व 


लोगों के सामाजिक तथा शैक्षिक स्तर को ऊँचा उठाने की दृष्टि से भी संविधान में कुछ निर्देशक तत्त्वों का वर्णन किया गया है, 
1.अनुच्छेद 44 के अनुसार राज्य देश के सभी नागरिकों के लिए एक समान आचार-संहिता बनाने का प्रयत्न करेगा। 
2.अनुच्छेद 45 के अनुसार राज्य संविधान लागू होने के 10 वर्ष के अन्दर 14 वर्ष की आयु तक के बालकों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेगा। 
3. अनुच्छेद 46 के अनुसार राज्य जनता के पिछड़े हुए वर्गों- विशेषकर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा तथा आर्थिक हितों की उन्नति के लिए विशेष प्रयत्न करेगा और सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा। 
4. अनुच्छेद 47 के अनुसार राज्य का यह प्रमुख कर्त्तव्य होगा कि वह लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य के विकास के लिए प्रयत्न करे। राज्य औषधि में प्रयोग किये जाने के अतिरिक्त ऐसे मादक द्रव्यों व पदार्थो के सेवन पर प्रतिबन्ध लगायेगा जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। 
5.  42वें संविधान संशोधन में एक नवीन अनुच्छेद 48क और जोड़ा गया है जिसमें कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करने तथा देश के वन्य जीव और वनों की सुरक्षा के लिए प्रयत्न करेगा। 


पंचायतीराज, प्राचीन स्मारक तथा न्याय संबंधी निर्देशक तत्त्व 


 देश के पंचायती राज के विकास, प्राचीन स्मारकों की रक्षा तथा न्याय की प्राप्ति के उद्देश्य से भी संविधान में कुछ निर्देशक तत्त्वों का वर्णन किया गया है।
1. अनुच्छेद 40 के अनुसार राज्य, ग्राम पंचायतों के गठन के लिए प्रयत्न करेगा और उनको ऐसी शक्तियाँ तथा अधिकार प्रदान करेगा जिससे कि वे स्वायत्त शासन की
इकाइयों के रूप में कार्य कर सकें। 
2. अनुच्छेद 49 में कहा गया है कि राज्य का यह दायित्व
होगा कि वह प्रत्येक स्मारक अथवा स्थान, कलात्मक अथवा ऐतिहासिक रूचि की वस्तुओं की जिन्हें संसद ने राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित कर दिया हो, रक्षा करे और उन्हें नष्ट होने, कुरूप बनाने अथवा उनका निर्यात करने
से रोकने का प्रयत्न करे।
 3. अनुच्छेद 50 में कहा गया है कि राज्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक् करने का प्रयत्न करेगा। इसका उदेश्य न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को सुरक्षित करना।

अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सम्बन्धी निर्देशक
तत्व 


शांति और सुरक्षा को दष्टि से सविधान के अनुच्छेद 51 में जिन निर्देशक तत्त्वों को अपनाया गया है, वे इस प्रकार हैं : 1. राज्य अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की वृद्धि के लिए
प्रयत्न करेगा। 
2. राज्य संसार के विभिन्न राष्ट्रों के मध्य न्यायपूर्ण व
सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाये रखने का प्रयत्न करेगा।
 3. राज्य, राष्ट्रों के आपसी व्यवहार में अन्तर्राष्ट्रीय कानून और सन्धियों के प्रति आदर की भावना बढ़ाने का प्रयत्न
करेगा।
 4. राज्य अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा सुलझाने के लिए प्रोत्साहन देगा।
निर्देशक तत्वों के उपर्युक्त वर्णन से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन सिद्धान्तों के आधार पर भारत में वास्तविक लोकतन्त्र की स्थापना हो सकेगी। इन सिद्धान्तों के कार्यान्वयन से भारत, संविधान की प्रस्तावना के अनुरूप एक कल्याणकारी राज्य बन सकेगा।

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