भारत सरकार ने कोरोना वायरस के ख़तरे को भांपते हुए सबसे पहले स्थिति का जायज़ा लेने के लिए ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) बनाया उसके बाद हर देश में बढ़ते ख़तरे को भांपते हुए बहुत अहम फैसले लिए हैं।
जनसंख्या की दृष्टि से भारत चीन के बाद दूसरे पायदान पर हैं फिर भी कोरोना के फैलाव का स्तर अपने दूसरे पायदान पर है तथा गति भी धीमी है लेकिन वर्तमान में जिस तरह संक्रमित मामले बढ़ रहे उससे लग रहा कि जिन देशों में जिस समय यह वायरस भारत से पहले पहुंचा और पहुंचने के बाद जिस साप्ताह दर सप्ताह संक्रमित लोगों की संख्या के ग्राफ बढ़े है उसी के अनुरूप आंकड़े भारत में भी सामने आ रहे हैं तो केन्द्र सरकार और राज्य सरकारें भी सचेत हो गई हालांकि भारत में इस वायरस को फ़ैलाने में विदेशी पर्यटकों और विदेश से आने वाले नागरिकों की भूमिका रही मगर बीच राहों में अटके उन नागरिकों की वतन वापसी भी जरूरी थीं लेकिन जब तक विदेशी आवागमन बंद करते तब तक कोरोनावायरस भारत की सीमाओं में दश्तक दे चुका था। अब चिंता इस बात है कि अब यह वायरस अपने तीसरे स्टेज पर पहुंच रहा है जिसमें स्थानीय लोगों को भी सपेट में ले रहा है। शुरुआत में राहत की खबर थी जिसमें जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में तीन मरीजों को कोरोना मुक्त भी किया था। अगर देश में कुछ ही लोग संक्रमित हो और संक्रमित लोगों की संख्या स्थिर रहें तो कुछ लोगों को बचाया भी जा सकता है। लेकिन चिंता की बात यह कि संक्रमित लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है यह संख्या जितनी अधिक और तेजी से बढ़ेगी वह चिंता के साथ साथ भयावह भी होगी।
ऐसे हालातो में बात आती है हमारे देश के सिस्टम की मजबूती की। कि भारत के पास आपदा राहत कोष कितना सक्षम और मजबूत है? आर्थिक स्तर कैसा है? देश में चिकित्सा सुविधा , अस्पताल, तथा दवाईयों के उत्पादन की क्षमता, चिकित्सा कर्मचारियों की संख्या, तकनीकी, आदि स्तर पर हम पहले से कितने तैयार है? इन्हीं परिस्थितियों में देश की तरक्की की अग्निपरीक्षा होगी।
भगवान करे भारत को इस वैश्विक महामारी से जल्द मुक्ति मिले । सब कुछ सामान्य हो अच्छा हो।
लेकिन दुर्भाग्यवश अगर यह वायरस तेजी से फैलता है तो ऐसी स्थिति में देश की दशा क्या होगी? तो डरने से क्या होगा ? संयम रखना होगा । सकारात्मक सोच के साथ आगे बढना होगा। देश के माननीय प्रधानमंत्री जी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यु करवाया तथा थाली और ताली बजाने कर विजयी भाव व्यक्त करने का संदेश दिया हालांकि थाली बजाने से कोरोनावायरस के प्रति कोई वैज्ञानिक तर्क है या अध्यात्म है या अन्धविश्वास इन सब बातों पर ध्यान न देकर उनके निर्देशों का पालन करना बहुत जरूरी था क्योंकि कोरोनावायरस को फैलने से रोकने का सबसे अच्छा तरीका है वह लोगों की संपर्क श्रृंखला को तोड़ना जो बिल्कुल कारगर साबित हो सकता है। लेकिन सबसे बड़ी बात है बन्द की तो यह कदम बहुत देरी से उठाया गया इससे पहले काफी संक्रमित लोग भारत आ चुके थे। एक बड़े देश में सब कुछ बन्द सफल होना भी मुश्किल है क्योंकि रेल सेवा और बस सेवाएं बंद होने के कारण बड़ी संख्या में लोग रेलवे स्टेशन पर जमा हो गये हालांकि लोगों को जनता कर्फ्यु के एलान से पूर्व घर लौटना था जो कहीं जगह संभव नहीं हुआ।
दूसरी समस्या भारत के नागरिक जो विदेशों में है वो वतन वापसी की गुहार लगा रहे हैं जबकि हवाई सेवा बंद भी करनी है अगर उन नागरिकों को भारत लायें तो ख़तरा भी है कि कहीं संक्रमित लोगों की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा न हो जाएं । इसलिए सरकार को चाहिए कि उन देशों की सरकारों से अनुरोध करें कि भारतीय नागरिकों को रहने और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवावे।
हैं।
इसलिए सरकार को चाहिए कि लोगों को पाबंद करने के साथ-साथ उस अनुमानित स्थिति से निपटने के लिए पूर्व में तैयारियां शुरू करे हालांकि सकारात्मक सोच जरूर है मगर परिस्थितियों और परिणाम पर भी सोचना ज़रूरी है क्योंकि जिस गति से यह वायरस फैल रहा इसे मध्यनजर रखते हुए आपदा प्रबंधन और परिस्थितियों से निपटने की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ें।
क्योंकि कभी इटली सरकार और वहां के लोगों ने ऐसी कल्पना भी नहीं की थी।
प्रकृति के प्रकोप की सीमा नहीं है विषम परिस्थितियां उत्पन्न होने में वक्त नहीं लगता। जबकि पर्यावरण से भी सहयोग नहीं मिल रहा शुष्क मौसम की जगह कुछ स्थानों में पश्चिमी विक्षोभ के कारण वर्षा भी हो रही है। इसलिए सरकार से अनुरोध होगा कि आगामी प्रबंध के लिए जरा सी भी चूक न करें।
कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए भारत सहित दुनिया भर में भले ही लॉकडाउन यानी देशों को पूरी तरह बंद करने का रास्ता अपनाया जा रहा हो, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी WHO ने कहा है कि यह काफ़ी नहीं है। इसने कहा है कि बाद में यह वायरस फिर से पैर न पसारने लगे इसके लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य के उपाए ज़रूरी हैं। तथा स्वास्थ सेवाओं का स्टेन्डर्ड बहुत उच्च स्तर का होना जरूरी है। WHO का यह इशारा उन देशों के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है जिन देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था बेहद ख़राब स्थिति में है और कोरोना वायरस से लड़ने के लिए तैयारी भी नहीं हुई है। इस लिहाज से भारत के लिए बड़ी चुनौती है। भारत या अन्य किसी देश को इस महामारी से निपटने के लिए उनके चिकित्सा संबंधी एवं अन्य आपातकालीन संसाधनों के विस्तार और उपयोगिता का भी योगदान महत्वपूर्ण है। तथा आप ने पिछले चार पांच साल में देश में कितने अस्पताल बनाये कितने चिकित्सा कर्मियों की तादाद बढाई । अगर आपने पिछले बजट में चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा पर अधिक खर्च किया है या एडवांस में है तो इस संक्रमण से निपटना आसान होगा।
लेकिन भारत में वेंटिलेटर्स तथा बड़ी मात्रा में बेड उपलब्ध करवाने वाले एम्स और सरकारी अस्पतालों की स्थति इतनी अच्छी नहीं है क्योंकि भारत विशाल जनसंख्या वाला देश है।
सुनने में आ रहा है कि कि सैंपलों की जाँच के लिए भी पर्याप्त तैयारी नहीं है। जाँच किट कितने हैं, भारत में अभी तक बहुत कम सैंपल टेस्ट हो रहे हैं। अगर भारत के दूरदराज इलाकों और गांवों में सैंपल टेस्ट किट उपलब्ध करवाने की जरूरत पड़ती है तो किस प्रकार से तैयार है यह महत्वपूर्ण बात है। युरोप के काफी देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर है फिर भी वहां इस महामारी से हड़कंप मचा हुआ है। अस्पताल और वेंटिलेटर की संख्या तथा दवा निर्माता कंपनीयो की स्थिति भी बेहतरीन होना जरूरी क्योंकि जितने अधिक मात्रा में संसाधन उपलब्ध होंगे तभी ऐसी महामारी से मुकाबला आसानी से किया जा सकता है।
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