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Sunday, February 2, 2020

गणित की प्रकृति एवं शिक्षण

Maths teahing and method
गणित शिक्षण




. गणित :

गणित का अर्थ-

गणित अंक, अक्षर, चिह्न आदि संक्षिप्त संकेतों का वह विज्ञान है जिसकी सहायता से परिमाण,दिशा तथा स्थान का बोध होता है। 'गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा मन या मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है -लॉक

  गणित की प्रकृतिः


गणित में परिणामों की निश्चितता होती है यही कारण है । गणित आशिक सत्य को भी स्वीकार नहीं करता। कभी भी गणना करें यदि आँकड़े समान है तो परिणाम निश्चित रूप से सही होगा। गणित की अपनी भाषा है जिसमें विभिन्न गणितिय पद, प्रत्यय, सूत्र, सिद्धान्त तथा संकेत होते हैं। इसमें संक्षिप्तता निहित है। गणित का ज्ञान यथार्थ, क्रमबद्ध, तार्किक तथा स्पष्ट होता है। गणित में अमूर्त प्रत्ययों को मूर्त रुप में परिवर्तित एवं व्याख्या की  जाती है। गणित के नियम, सिद्धांत, सूत्र-सार्वभौमिक, सर्वमान्य व संदेह रहित होते हैं। गणित की प्रतिबद्धता शुद्धता के प्रति अत्यधिक है।  गणित द्वारा वातावरण में उपलब्ध वस्तुओं, तथ्यों के बीच तुलना करने संबंध देखने तथा समान्यीकरण करने की योग्यता विकसित होती है।

                गणित का महत्त्व :

  गणित का ज्ञान रखने वाला ही गणित के लाभ को जान सकता है यह लाभ जीवन के कई क्षेत्रों (मूल्यों) से संबद्ध है।
  बौद्धिक पाठ्यक्रम का अन्य कोई विषय ऐसा नहीं है जो
गणित की तरह बच्चों के मस्तिष्क को क्रियाशील बनाता हो। 
 हब्श के अनुसार-गणित मस्तिष्क को तीक्ष्ण व तीव्र बनाने मेंउसी प्रकार काम करता है जैसे किसी औजार को तीक्ष्ण करने में काम आने वाला पत्थर।
  प्लेटो के अनुसार-गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने का अवसर प्रदान करता है, एक सुशुप्त आत्मा में चेतना एवं नवीन जाग्रति उत्पन्न करने का कौशल गणित ही प्रदान कर सकता है। उपयोगिता-व्यावहारिक जीवन में गणित की उपयोगिता अन्य विषयों से अधिक है इसके अतिरिक्त सभी विषयों में गणित की उपयोगिता है।
बेकन के अनुसार-गणित सभी विज्ञानों का सिंहद्वार और कुंजी हैं।
 काण्ट के अनुसार-विज्ञान उतना ही यथार्थ है जितना वह गणित का उपयोग करता है।
  यंग के अनुसार-'लौह वाष्प और विद्युत के इस युग में जिस ओर भी देखें गणित ही सर्वोपरि है, यदि यह रीढ की हड्डी' निकाल दी जाए तो हमारी भौतिक सभ्यता का अंत ही हो जाएगा।

अनुशासनात्मक-

गणित का ज्ञान केवल बच्चों की मानसिक स्तर
का विकास एवं उन्हें नियंत्रित ही नहीं करता है बल्कि उनके व्यक्तित्व को गंभीरता विवेक एवं चिंतनशीलता जैसे गुण भी प्रदान करता है। गणित विषय का जान यथार्थ, वास्तविक व शुद्ध है जिससे यह बच्चों के मन में एक विशेष प्रकार का अनुशासन विकसित करता है।

नैतिक-

गणित का ज्ञान बच्चों के चारित्रिक एवं नैतिक विकास में सहायक है।  
डटन के अनुसार-गणित तर्कसम्मत विचार, यथार्थ कथन, तथा सत्य बोलने की सामर्थ्य प्रदान करता है। व्यर्थ गप्पे, आडम्बर, धोखा तथा छल-कपट उस मन का कहना है जिसका गणित का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।

 सामाजिक-

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है सामाजिक जीवन यापन करने के लिए गणित के ज्ञान की अत्यधिक आवश्यकता होती है। वर्तमान में हमारी सामाजिक संरचना में जो भी वैज्ञानिक एव सुव्यवस्था नज़र आती है उसका श्रेय गणित को है। सामाजिक लेन देन, उद्योग-व्यापार आदि व्यवसाय गणित पर ही निर्भर है।
  नेपोलियन के अनुसार-गणित की उन्नति तथा वृद्धि देश की सम्पन्नता से सम्बंधित है। 

  सांस्कृतिक-

गणित विषय को संस्कृति एवं सभ्यता का सृजनकर्ता एवं पोषक माना जाता है। संस्कृति में रीति-रिवाज़, खान-पान, रहन-सहन, कला, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक आदि सभी पहलू समाहित है। 
  हागबेन के अनुसार-'गणित सभ्यता व संस्कृति का दर्पण है। 
  सौंदर्यात्मक-गणित पढ़ने वाले के लिए गणित एक गीत है, कला है, संगीत है तथा आनंद प्राप्ति का एक प्रमुख साधन है। सभी कलाएँ चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत तथा नृत्य सभी में गणित का योगदान है। 
  लेबनीज के अनुसार-'संगीत मानव के अचेतून मन का अंकगणित की संख्याओं से संबंधित एक आधुनिक सुप्त व्यायाम है। 

  जीविकोपार्जनमूल्य-

प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जीविका कमाने के लिए गणित के ज्ञान की आवश्यकता प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से अवश्य होती है।

   मनोवैज्ञानिक मूल्य-

गणित के अध्ययन से बालकों की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। गणित शिक्षण द्वारा बालकों की जिज्ञासा, रचनात्मक प्रवृतियाँ आत्म तुष्टि तथा आत्म प्रकाशन आदि भावनाओं की तृप्ति व संतुष्टि होती है। गणित में छात्र "करके सीखना" "अनुभवों द्वारा सीखना” तथा समस्या समाधान आदि महत्त्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर ज्ञान प्राप्त करता है। 

वैज्ञानिक दृष्टिकोण-

गणित की तर्कपूर्ण चिंतन पद्धति, वस्तुनिष्ठता, शुद्धता, परिणामों की निश्चितता, वैज्ञानिक द्रष्टिकोण एवं चिंतन शैली विकसित करता है। सामान्यत: छात्र गणित की समस्या को वैज्ञानिक विधि के चरणों का इस्तेमाल करते हुए हल करते है। 

   अन्तर्राष्ट्रीय मूल्य-

गणित के क्षेत्र में हुई प्रगति किसी एक राष्ट्र वर्ग, जाति या धर्मानुयाइयों का कार्य नहीं है न ही किसी राष्ट्र या समुदाय विशेष की सम्पत्ति है। गणित संबंधी प्रत्येक कार्य अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता व महत्व रखता है। 

     विद्यालय पाठ्यक्रम में गणित का महत्व एवं स्थानः 

गणित का मानव जीवन से घनिष्ठ संबंध : दैनिक जीवन में आय व्यय लेन-देन सभी जगह गणित। 
    बच्चों में तार्किक दृष्टिकोण का विकास : गणित में प्रत्येक पद दूसरे पद से तार्किक आधार पर सम्बंधित होता है। गणितिय कार्य करते हए बालकों में भी अनेक तार्किक शक्तियों का विकास होता है।
     गणित विशेष प्रकार से सोचने का दृष्टिकोण प्रदान करता है छात्र अपना कार्य क्रमबद्ध, नियमित तरीके से शुद्धता के साथ करना सीखते हैं। 
     यह विज्ञान विषयों का आधार है-भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान चिकित्सा, भूगर्भ विज्ञान, ज्योतिष शास्त्र, नक्षत्र विज्ञान आदि। इसके अतिरिक्त अन्य विषयों से भी संबंध है। गणित एक यथार्थ विज्ञान है (Exact Science) गणित के सभी प्रत्यय, सूत्र, तथ्य आदि पूर्ण रुप से सही स्पष्ट व संदेह रहित होते हैं। बच्चों में मानसिक शक्तियों, चरित्र निर्माण व नैतिकता, अनुशासन संबधी गुण का विकास। गणित में सार्थक, अमूर्त, एवं संगत क्रियाओं के अध्ययन द्वारा जटिल अवधारणाओं को समझने व उपयोग में लेने में समर्थ बनाता है।


2. शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया

 गणित शिक्षण के अनुदेशनात्मक उद्देश्य

 1. ज्ञानात्मक (Knowledge):

  (i) प्रत्यास्मरण (Recall): गणित के पदों, तथ्यों, सम्प्रत्ययों.संकेतों, सूत्रों, परिभाषाओं, सिद्धांतों आदि की जानकारी (ii) प्रत्याभिज्ञान (Recognition) : पदों, तथ्यों,
संकल्पनाओं, आकृतियों विधियो, प्रकि याओं सूत्रों की
पुन: पहचान
 बोधात्मक (Understanding): (i) परिभाषाओं सिद्धान्तों सूत्रों से संबंधित उदाहरण देना। (ii) तुलना व संबंध स्थापना (ii) वर्गीकरण करना (iv) संबंधित प्रत्ययों में अन्तर करना (v) शब्दों में व्यक्त संबंधों को संकेतों में व विपरीत (vi) त्रुटि ज्ञात कर सुधार 

  2 ज्ञानोपयोग (Application) :

(i)समस्या का विश्लेषण कर पता लगाता है क्या ज्ञात करना है।
(ii) पदत्तों मे संबंध स्थापित करना। (iii) प्रदत्तों की पर्याप्तता, अधिकता या अनुरुपता पता लगाता है। 
(iv)समस्या समाधान हेतु उपयुक्त विधि का चुनाव। 
(v) वैकल्पिक विधि सझाता है।(vi)
सामान्यीकरण करता है। (vii) परिणामों की पुष्टि व निष्कर्ष निकालता है। (viii) गणना व समस्या हल करता है। (ix) समस्या के सम्भावी उत्तर का अनुमान लगाता है। 

कौशल या दक्षता (Skill):

(1) गणना कार्य में तेज गति व सरलता से लिखित व मौखिक गणना करता है। ज्यामितिय आकृतियाँ एवं आरेख बनाने में-दी गई आकृतियाँ, माप अनुसार शुद्धता से बनाता है। (iii) सारणी, चार्ट, ग्राफ आदि पढ़ने में-(i) गति व शुद्धता से सारणी या चार्ट पढ़ता है, (ii) आरेखों, सारणी व चार्टकी व्याख्या करता है।

 अभिरुचि (Interest) : 

(i) गणितीय साहित्य पढ़ना, गणित के प्रकरणों पर लेख लिखना, पहेलियाँ हल करना, गणितिय परिषद् में भाग लेना आदि। 
 (ii)समस्या हल में लघु विधि का प्रयोग करता है।(iii)
गणित का अतिरिक्त अध्ययन करता है। (iv) अध्यापक से पाठ्यक्रम से इतर समस्याओं पर चर्चा करता है। (v) गणितज्ञों की जीवनी पढ़ने में रूचि लेता है। (vi) समस्या के हल में निरन्तर प्रयत्नशील रहता है व पूरा करके ही मानता है। 
दृष्टिकोण या अभिवृति (Attitude & Aptitude) : (i) गणित संबंधी व्यक्तियों तथा पाठ्यपुस्तकों से अपने संबंध
बनाए रखते हैं। 
(ii)समस्या के निकाले गए अपने उत्तर पर दृढ़ विश्वास करते हैं।
(iii) विद्यालय में गणित परिषद् की गतिविधियों को बढ़ावा
देता है। (iv) गणित के होशियार छात्रों का साथ पसंद करता है कमजोर छात्रों की मद्द करता है। (v) समस्या के सभी पहलुओं की जाँच करता है।
गलती स्वीकार करता है तथा तार्किक सोच की प्रकृति दर्शाता है।

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