वंचित एवं अलाभान्वित बालक
Disadvantaged And Deprived Child
प्रत्येक बालक को अपना सर्वांगीण विकास करने के लिए उचित सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक वातावरण की आवश्यकता होती है, इस वातावरण के अभाव में कोई भी बालक अपना सर्वांगीण विकास कर पाने में असमर्थ होता है।
वंचित बालकों का अभिप्रार्य उन बालकों से है जो सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़े वर्ग से जुड़े हुए है। इन बालकों मे दूर-दराज के अनुसूचित जातीय, जनजातीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों के बालक शामिल है जिन्हे शहरों के बालको के समान शक्षिक सुविधायें उपलब्ध नही हो पाती है। इस प्रकार के बालकों मे वे बालक भी शामिल होते है जो ग्रामीण एवं कच्ची बस्तियों के गैर-सुविधायुक्त विद्यालयों में अध्ययनरत है। इस प्रकार पारिवारिक वातावरण एवं संस्थागत वातावरण इन बालकों की शैक्षिक न्यूनताओं को और बढ़ा देता है।
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि वंचित वर्ग के बालक वे बालक है जिन्हे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवेश से जुड़े आवश्यक एवं अपेक्षित अनुभव उद्दीपक नही मिलते, जिसके परिणामस्वरूप ऐसे बालकों का वांछित विकास नही हो पाता है।
वंचित बालकों की पहचान : वंचित एवं अलाभान्वित बालक निम्न प्रकार का व्यवहार प्रदर्शित करते है जिसके द्वारा इनकी पहचान की जा सकती है— 1. अल्प भाषात्मक विकास 2. बाहरी दुनिया एवं उसमें होने वाले परिवर्तनों के प्रति अनभिज्ञ एवं उदासीन 3. निम्न अभिव्यक्ति स्तर 4. निम्न स्तरीय शैक्षिक उपलब्धि 5. वाचन एवं अधिगम संबंधी निर्योग्यतायें 6. रूढ़ीवादी, निराशावादी, शर्मीले एवं अन्तर्मुखी । 7. पूर्वाग्रह से ग्रसित 8. पहल शक्ति का अभाव 9. चिंता एवं भय की अधिक मात्रा 10. निम्न सामाजिक आर्थिक स्तर 11. शिक्षा के प्रति नकारात्मक अभिवृत्ति
वंचित एवं अलाभान्वित बालकों की शिक्षा :
वंचित एवं अलाभान्वित बालकों के व्यवहार एवं विशेषताओं से इनकी शिक्षा हेतु दिशा प्राप्त होती है। इनकी वंचना को दूर करने के लिए निम्न प्रकार की शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए।
1 अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में संशोधन 2. भाषा संवर्धन कार्यक्रम 3. शिक्षा के उद्देश्यों का जीवन से जुड़ाव 4. अभिभावकों की शिक्षा 5. अनुदेशन कार्यक्रमों का आयोजन बालकों की0आवश्यकताओं एवं योग्यताओं के अनुरूप। 6. पर्याप्त अभ्यास कार्य। 7. त्वरित अधिगम कार्यक्रम0अधिगम सामग्री का प्रतिमाओं व सहायक सामग्री केद्वारा प्रस्तुतीकरण। 9. वंचित वर्ग के बालकों की जीवन शैली में परिवर्तन। 10. कक्षा के सामाजिक-भावात्मक वातावरण में परिवर्तन।
उपरोक्त कदम उठा कर वंचित बालकों को उचित सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक वातावरण उपलब्ध करवाया जा सकता है तथा उनके सर्वागीण विकास को सही दिशा प्रदान की जा सकती है।
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