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Wednesday, February 12, 2020

सृजनशील बालक


Creative Child
Creative Child सजृनशील बालक




सृजनशील बालक (Creative Child)

सृजनशील बालक ऐसा बालक होता है जो अनुपयोगी वस्तुओं का उपयोग करते हुए उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करता है। नवीन विचारों के प्रति जागरूक होता है तथा तत्काल प्रतिक्रियाए प्रस्तुत करता है। सृजनात्मकता के लिए औसत बुद्धि होना आवश्यक है। लेकिन प्रतिभाशाली बालक सृजनशील हो जरूरी नहीं है।
सृजनात्मकता सार्वभौमिक होती है। प्रत्येक बालक अपनी बाल्यावस्था में किसी न किसी प्रकार से सृजनात्मकता का प्रदर्शन करता है लेकिन इसका विकास वातावरण पर अधिक निर्भर करता है।

 सृजनात्मकता बालकों की पहचान :

सृजनशील बालक की पहचान निम्न व्यवहार या विशेषताओं से की जा सकती है1. विचारों तथा अभिव्यक्ति में मौलिकता 2. अन्वेषणात्मक तथा जिज्ञासु प्रवृत्ति । 3. स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता 4. गैर-परंपरागत विचारों में रूचि 5. अभिव्यक्ति में प्रवाह 6. सृजन गौरव 7. जोखिम उठाने को तत्पर 8. अभिव्यक्ति में विविधता 9. रचनात्मक आलोचना 10. आमूल-चूल परिवर्तनवादी

 सृजनशील बालकों की शिक्षा : 

 सृजनशील बालकों को उचित शिक्षा प्रदान करके उनकी सृजनात्मकता का विकास करवाया जा सकता है तथा देश की उन्नति मे योगदान दिया जा सकता है। क्योंकि सृजनशील व्यक्ति राष्ट्र की अमूल्य निधि है। सृजनात्मकता के विकास के लिए शिक्षा व्यवस्था निम्न प्रकार से की जानी चाहिए
 1. सृजनात्मक प्रवृत्ति वाले अध्यापकों की नियुक्ति:
सृजनात्मक प्रवृत्तियों वाला शिक्षक ही बालकों में सजनात्मकता का विकास करने में समर्थ होता है। अतः सजनशील बालको के लिए साहित्य, विज्ञान, कला आदि विभिन्न क्षेत्रों में तरह-तरह के सृजनात्मक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करने वाले अध्यापकों की नियक्ति की जानी चाहिए।
2.सजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए उचित अवसर एवं
वातावरण प्रदान करना : सृजनशील बालकों से सजनात्मक चिंतन का विकास किया जाये। बालको को अपनी सृजनात्मकता को प्रदर्शित करने के लिए उचित अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।3. कल्पना का सम्मान करना : बालक द्वारा अभिव्यक्त किसी कल्पना का उपहास नही किया जाना चाहिए अपितु उसका सम्मान कर विकसित करने का प्रयास किया जाना चाहिए। क्योंकि कल्पना एवं सृजनात्मकता में घनिष्ठ संबंध है। 
4.मौलिकता एवं लचीलेपन को प्रोत्साहन : शिक्षक द्वारा बालकों को विभिन्न नवीन कार्य करने तथा पुराने कार्यो में
अपेक्षित सुधार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। 5. छात्रों को प्रतिक्रिया देने के लिए प्रोत्साहित करना :अध्यापकों को छात्रों के समक्ष समस्यात्मक प्रश्नों अथवा परिस्थितियों को प्रस्तुत करने उनकी प्रतिक्रियाओं को आमंत्रित करना चाहिए। छात्रों के द्वारा दिए जाने वाले मौलिक सुझावों का उचित मूल्यांकन किया जाना चाहिए। 6.पाठ्यक्रम का उचित आयोजन : विद्यालय में पाठ्यक्रम का आयोजन इस प्रकार किया जाये कि वह बालकों में अधिकाधिक सृजनात्मकता का विकास कर सके। सैद्धांतिक पाठ्यक्रम की अपेक्षा व्यवहारिक पाठ्यक्रम को अपनाया जाये। 7. सृजनात्मक कार्यों से संबंधित सूचनाओं के संकलन0को प्रोत्साहन: अध्यापकों को अपने छात्रों में सृजनात्मक कार्यो से संबंधित नवीनतम सूचनाओं को संकलित करने की प्रवृत्ति विकसित करनी चाहिए। साथ ही छात्रों को इस हेतु प्रर्याप्त अवसर एवं सुविधायें भी उपलब्ध करवानी चाहिए।
इस प्रकार उपरोक्त बिन्दुओं पर ध्यान देकर सृजनशील बालक की सृजनात्मकता मे वृद्धि की जा सकती है।

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