(Delinquent)
बाल अपराधी से तात्पर्य ऐसे बालक से है, जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति समाज द्वारा अस्वीकृत तरीकों से करता हैं या सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बनाए गए कानूनों एवं नियमों की अवहेलना करता है। बाल अपराधी की आयु 18 वर्ष से कम होती है।
बाल अपराध विज्ञान का जनक सीजर लोम्ब्रैसो को माना जाता है।
बाल अपराधी के विषय में मनोवैज्ञानिकों के कुछ प्रमुख कथन निम्न प्रकार से हैं
क्लासमियर एंव गुडविन के अनुसार: "बाल अपराधी
वह बालक या युवक होता है, जो बार-बार उन कार्यो को करता है, जो अपराधों के रूप में दण्डनीय है।"
हीली: "वह बालक जो समाज द्वारा स्वीकृत आचरण का पालन नहीं करता, अपराधी कहा जाता है।"
गुड़ : "कोई भी बालक. जिसका व्यवहार सामान्य में सामाजिक व्यवहार से इतना भिन्न हो जाए कि उस
समाज विरोधी कहा जा सके, बाल अपराधी है।
स्किनर : "बाल अपराध की परिभाषा किसी कानून के उस उल्लघंन के रूप में की जाती है, जो किसी वयस्क द्वारा किये जाने पर अपराध होता हैं।"
बाल अपराध के कारण :
बाल अपराध के निम्न कारण हैं
(i) आनुवंशिक कारण : मनोवैज्ञानिकों ने अनुसंधानो के
आधार पर बताया कि बालकों को अपराध प्रवृत्ति वंशानुक्रम से प्राप्त होता है तथा गुण सूत्रों की रचना भी
इसे प्रभावित करती है। (ii) सामाजिक कारण : कुसंगति, समाज की दोषपूर्ण व्यवस्था, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रवाद, आरक्षण आदि भी बाल अपराध को बढावा देते हैं। (iii) शारीरिक कारण : किसी प्रकार के शारीरिक दोष से .. बालक में हीनभावना आ जाती है, जिससे वह अपराध
' प्रवृत्ति की ओर प्रवृत्त हो जाता है। (iv) मनोवैज्ञानिक कारण : विभिन्न प्रकार के तनाव, भग्नाशा,द्वंद्व के कारण भी बालक अपराधी बन जाता है। (v) पारिवारिक कारण : परिवार का दूषित वातावरण भी बालकों में अपराध प्रवृत्ति का कारण बनता है।
बाल अपराधी की विशेषताएं:
(i) शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट माँस पेशीयों वाला (ii) स्वभाव से अशांत, शक्ति से भरपूर एवं आक्रामक। (iii) सत्ता को चुनौती देने वाले (vi) ये बालक अपारंपरिक, संदेही, द्वेषपूर्ण एवं शत्रुता का - भाव रखने वाले (v) विद्यालयी सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाना (vi) छोटे बालकों को परेशान करना।
(vii) विद्यालय की कार्यवाहियों एवं निर्णयों का विरोध आदि
बाल विकास एवं शिक्षा शास्त्र के लिए शिक्षा :
बाल अपराधियों के लिए शिक्षा का स्वरूप 1. उचित वातावरण: ब बाल अपराध की प्रवत्ति के विकास का कारण दुषित वातावरण होता है, अतः बाल अपराधिया के लिए उचित वातावरण में शिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।
2.प्रर्याप्त स्वतंत्रता: बाल अपराधियों को निश्चित सीमाओ में स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिये, ताकि उन्हें
अभिव्यक्ति का अवसर उपलब्ध हो सकें। 3. सुझाव एवं परामर्श : सकारात्मक सुझावों के द्वारा बाल
अपराधियों के परम अहम् को मजबूत किया जा सकता है। 4.वांछित सामाजिक दृष्टिकोण का विकास : बाल अपराधियों में सामाजिक व्यवस्था के प्रति रोष होता है, अतः उनमें वांछित सामाजिक दृष्टिकोण का विकास करवाके अपराध प्रवृत्ति का निवारण किया जा सकता है। . 5.उपचारात्मक एवं व्यावसायिक शिक्षा : बार-बार असफल होने वाले विद्यार्थियों को उपचारात्मक शिक्षण करवाया जाये तथा भावी जीवन की तैयारी के लिये
व्यावसायिक शिक्षा दी जानी चाहिए। 6. पाठ्य सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था : बालकों की0अतिरिक्त ऊर्जा का सदुपयोग करने के लिए विद्यालय में पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन किया जाना चाहिए।
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