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Friday, February 21, 2020

परतदार (अवसादी) चट्टाने

sedimentary rock
sedimentary rock



परतदार (अवसादी) चट्टाने 


इन चट्टानों को "अवसादी" चट्टान भी कहते है क्योंकि इन चट्टानों का निर्माण अपरदन के द्वारा प्रवाहित पदार्थ का जमाव समदों की तली में होता है इस तरह चट्टान चूर्ण एकत्र होकर समुद्र की सतह में जमा होने के कारण अवसादी चट्टानों का निर्माण होता है । इन अवसादी चट्टानों 
को परतदार चट्टान कहते हैं क्योंकि इनमें अवसाद परतों के रूप जमा होता है ।  अपक्षय एवं अपरदन के विभिन्न साधनों  के द्वारा सतह पर स्थित चट्टानों की टूट फूट से प्राप्त मलवा नदियों द्वारा बहाकर ले जाया जाता है
और समुद्र की तली में जमा हो जाता है । इस तरह लम्बे समय में एक तह के बाद दूसरी तह का जमाव होता है और इस प्रकार अंत में परतदार चट्टान की रचना होती है । इन चट्टानों की सरचना के लिये आवश्यक चट्टान चूर्ण  प्राचीन चट्टाना के अपक्षय और अपरदन द्वारा प्राप्त होता है । परतदार चट्टान की रचना एक निश्चित कम में होती है सबसे पहले बड़े टुकड़े जमा होते हैं तथा उसके बाद महीन कण जमा होते है । शुरू में चट्टान बहुत संगठित नहीं होती परन्तु परतों के भार के कारण तथा कणों को जोड़ने वाले तत्वा  से चट्टान संगठित हो जाती है । सिलिका  कैलसाइट आदि परतदार चट्टान के संयोजक तत्व है ।

 परतदार चट्टानों की निम्नलिखित विशेषतायें होती है -

1. परतदार चट्टानों का निर्माण चट्टानों चूर्ण एवं जीवावशेषों के एकत्रीकरण से होता है। 2. परतदार चट्टानों में जीवावशेष पाये जाते है । 3. अवसादी चट्टानों में परते पाई जाती हैं । ये चट्टानें भूपृष्ठ के बहुत बड़े भाग में पाई जाती है 4. परतदार चट्टानें क्षैतिज रूप में पाई जाती है कई बार क्षैतिज दबाव के कारण चट्टानों में झुकाव तथा वलन पड़ जाते हैं । 5. परतदार चट्टानों में संधियाँ तथा जोड़  अधिक पाये जाते है ये जोड़ ' 'संयोजक  तल"  से लम्बवत होते है । 6. परतदार चट्टान में दो परतों के बीच के भाग को “संयोजक सतह" कहते हैं। 7. अधिकांश परतदार चट्टाने मुलायम होती है जैसे क्ले तथा शेल  ये चट्टाने भेद्य होती है जैसे बलुया पत्थर 

 परतदार चट्टानों का वर्गीकरण 

 1. निर्माण में पाये जाने वाले अवसादों के अनुसार -

(i) यांत्रिक चूर्ण से निर्मित  (a) बलुआ पत्थर  (b) कांग्लोमरेट अथवा गोलाष्प (c) चीका मिट्टी  (ii) कार्बनिक तत्वों से निर्मित चट्टान  (a) चूने का पत्थर  (b) कोयला (iii) रासायनिक तत्वों से निर्मित चट्टान  (a) खरिया मिट्टी 
(b) शेल खरी (c) नमक की चट्टान 
 (1) परतदार चट्टानों के निर्माण में भाग लेने वाले साधनों के अनुसार
(1) जलज बहाव (ii) सागर में जमा तलछट चट्टान 
(ii) नदीकृत चट्टान  । (2) वायु द्वारा निर्मित चट्टान  (3) हिमानी द्वारा निर्मित चट्टान  (1) रचना सामग्री के आधार पर वर्गीकरण : परतदार चट्टानों का निर्माण कई प्रकार के चट्टान चूर्ण तथा अवसादों से होता है कभी कुछ घुलनशील रासायनिक पदार्थ  होते है कई वनस्पति और जीवों के अवशेष होते है इसे कार्बनिक पदार्थ कहते है इस प्रकार तीन तरह के पदार्थो (चट्टान चूर्ण, रासायनिक घुलनशील पदार्थ तथा कार्बनिक पदार्थ) के आधार पर चट्टानों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है । (1) चट्टान चूर्ण से निर्मित  (2) रासायनिक पदार्थों से निर्मित (3) कार्बनिक तत्वों से निर्मित  शैल चूर्ण से निर्मित परतदार चट्टान अपक्षय की यांत्रिक क्रियाओं  के द्वारा चट्टानों का विघटन  तथा वियोजन होता है अपरदन के विभिन साधन जैसे नदी जल, हवा, हिमनद , सागरीय लहरें आदि इन पदार्थों को एक जगह से ले जाकर दूसरी जगह समुद्र तल में जमा करते हैं जब इन पदार्थों का जमाव सागर, झील अथवा नदी में होता है तो विभिन्न परतें बन जाती है । इस श्रेणी की चट्टानों में मुख्य है बलुआ पत्थर, कांग्लोमरेट, चीका मिट्टी तथा लोयस आदि है।
(i) बलुआ पत्थर  : बलुआ पत्थर का निर्माण मुख्य रूप से बालू के कणों से होता है । जब बालू के कणों का संगठन संयोजक पदार्थ  द्वारा होता है तो बलुआ पत्थर चट्टान का निर्माण होता है बलुआ पत्थर के रंग में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है यह लाल, सफेद या भूरे रंग में पाया जाता है | बलुआ चट्टान पोरस होती है जल आसानी से प्रवेश कर नीचे तक चला जाता
(ii) कांग्लोमरेट  : बालु के साथ गोल आकार के कंकड़ भी मिले रहते है । बड़े-बड़े गोल पत्थर के सम्मिश्रण से चीका  मिट्टी द्वारा संयुक्त होने पर ग्रेवल  का निर्माण होता है ये ग्रेवल का रूप कांग्लोमरेट में बदल जाता है।
(iii) चूना प्रधान चट्टन  : चूने की चट्टानों का निर्माण झील
अथवा सागर में जीवों और वनस्पतियों के अवशेष के जमा होने से बनता है जिनमें चूने की प्रधानता होती है । चूने का पत्थर पतली एव मोटी परतों में पाया जाता है । चूना पत्थर कई रगों में पाया जाता है खरिया मिट्टी  चूना पत्थर की ही
एक प्रकार होती है परन्तु यह अधिक पोरस तथा मुलायम होती है । (iv) कार्बन प्रधान चट्टान : इन चट्टानों की प्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों के अवशेष के जमा होने तथा सगठित होने से बनती है जब वनस्पति का भाग भूगर्भिक हलचल होने के कारण नीचे चला जाता है उसके ऊपर अवसाद जमा हो जाता है अधिक दबाव और ताप के कारण वनस्पति का रूप बदल जाता है इस प्रकार की चट्टान कोयला होती है । इस प्रकार कोयला हमेशा तहों  में पाया
जाता है।

 (2) निर्माण की प्रक्रिया तथा जमाव के स्थान के आधार पर वर्गीकरण

परतदार चट्टानों का जमाव सागर, झील अथवा नदी के तटों पर होता है इन चट्टानों के जमाव में जल हवा हिमानी आदि का प्रमुख योगदान होता है । इस आधार पर परतदार चट्टानों को तीन भागों में बंटा गया है । (i) जलीय अथवा जल निर्मित चट्टानें  : जब नदियों द्वारा अवसाद एक स्थान से बहाकर सागर अथवा झीलों मे जमा कर दिया जाता है तो जलज चट्टान का निर्माण होता है । इसका निर्माण जल (ii) वायु निर्मित चट्टान  : मरूस्थली प्रदेशों में अपक्षय के कारण चट्टान चूर्ण बनता है और वायु एक स्थान से उड़ाकर दूसरे स्थान पर जमा करती है लगातार अवसादों के जमाव के बाद भिन्न परतें बन जाती है | लोयस का जमाव वायु निर्मित चट्टान का सबसे प्रमुख उदाहरण है लोयस में परते ठीक से नहीं होती है । 
 (iii) हिमानी चट्टान  : हिमानी अपने अपरदनात्मक
कार्य द्वारा चट्टानों के टुकड़ों को अपने साथ परिवहन करके कहीं दूर जमा करते है इस प्रकार हिमानी द्वारा जमा किये गये मलवे को हिमोढ़ या मोरेन कहते है। हिमोढ़ चार प्रकार के होते हैं : - (a) पार्श्ववर्ती हिमोद  (b) मध्यवर्ती हिमोढ़ (c) तली हिमोढ़ (d) अंतिम हिमोढ़ कहते हैं ।


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