स्वयं पूरा करते है और ज्ञान प्राप्त करते है यही प्रोजेक्ट विधि है। प्रोजेक्ट विधि के बारे में कछ महत्वपर्ण तथ्य निम्न प्रकार है।
• प्रोजेक्ट शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम रिर्चडस महोदय द्वारा
किया गया था। प्रोजेक्ट शब्द शिक्षा के क्षेत्र में प्रयुक्त होने से पूर्व व्यावसायिक क्षेत्र में अभियन्ताओं और सर्वेक्षणकर्ता द्वारा अपने कार्यों के लिए प्रयुक्त किया जाता था। शिक्षा के क्षेत्र में इस शब्द का प्रयोग 1908 में साच्यूट्स स्टेट बोर्ड द्वारा किया गया। योजना विधि की विचारधारा या अवधारणा देने का श्रेय कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन डी. वी. को दिया जाता है। इसे एक विधि के रूप में स्थापित करने का श्रेय जॉन डी. वी. के शिष्य W.H. किलपैट्रिक को दिया जाता है। जिन्होंने 1918 में इस विधि का प्रतिपादन किया। यह शिक्षण विधि दर्शन की प्रयोजनवादी विचारधारा पर आधारित है।
• भारत में इस विधि को लाने का श्रेय इसाईं शिक्षण संस्थाओं को दिया जाता है। • भारत में इस विधि का प्रथम सफल प्रयोग पंजाब राज्य के मोगा जिले में किया गया था।
परिभाषाएँ:
1. किलपैट्रिक के अनुसार, "योजना एक ऐसा सोद्देश्य कार्य है जो सामाजिक वातावरण में पूर्ण सग्लंगता से सम्पन्न किया जाता है।"
2. जे.ए. स्टीवेन्शन, "प्रोजेक्ट एक ऐसा समस्या मूलक
कार्य है जिसका समाधान उसके प्राकृतिक वातावरण मे
रहते हुए किया जाता है।"
3. बेलार्ड : "योजना वास्तविक जीवन का एक छोटा सा अंश है जिसे विद्यालय में संपादित किया जाता है।"
थॉमस एम. रिस्क' ने अपनी पुस्तक Principles & Practices of Teaching Secondary School की योजनाएं बताई है
1. उत्पादनात्मक योजना। 2. सीखने से संबंधित योजनाएं। 3. बौद्धिक या समस्यात्मक योजनाएँ।
'किलपैट्रिक' ने अपनी पस्तक Foundation of Methods में निम्न चार प्रकार की योजनाएं बताई है
1. रचनात्मक योजना। 2. रसा स्वादनात्मक योजना। 3. अभ्यासात्मक योजना।
4. समस्यात्मक योजना
5. योजना विधि के चरण: 1. परिस्थिति का निर्माण 2. योजना का चयन। 3. योजना का कार्यक्रम बनाना। 4. योजना का क्रियान्वयन। 5. योजना का मूल्यांकन। 6. योजना का लेखा तैयार करना।
योजना विधि के गुण:
1. यह विधि विद्यार्थियों में वैज्ञानिक गुणों का विकास
करती है।
2. यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों का पालन करती है।
इसमें व्यक्तिगत विभिन्नता के अनुसार अधिगम होता है। 3. यह विधि शिक्षार्थियों में सामाजिक गुणों का विकास
करती है। 4. यह विधि कर के सीखने पर आधारित है। 5. इस विधि में किसी समस्या का समाधान होता है या
फिर किसी वस्तु का निर्माण होता है। 6. यह विधि शिक्षार्थियों में व्यक्तित्व का विकास करती
दोषः
1. यह विधि श्रम साध्य विधि है। 2. यह विधि व्यय साध्य विधि है। 3. यह विधि समय साध्य विधि है। 4. यह विधि विद्यालय की सामान्य समय सारणी में व्यवस्थित नहीं हो सकती है। 5. इस विधि के लिये अधिक अनुभवी एवं कुशल अध्यापक की आवश्यकता होती है। 6. इस विधि पर अच्छी पाठ्यपुस्तकों का अभाव है।
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