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Friday, January 24, 2020

भौतिक विज्ञान (important nots)

Phisics important nots
Phisics important nots


गति (Motion)


• किसी निर्देश तन्त्र के सापेक्ष वस्तु की स्थिति में समय के साथ परिवर्तन को वस्तु की गति कहते हैं। 

• गति अनेक प्रकार की होती हैं। जैसे- सरल रेखीय गति, वर्तुल गति, दोलन गति, कम्पन गति आदि । 

• जब कोई वस्तु निश्चित समयान्तरालों में समान दूरियां तय करती है तो वस्तु की गति को समान गति कहते हैं और यदि असमान दूरियां तय करती है तो वस्तु की गति को असमान गति कहते हैं । 

• दूरीः 

किसी वस्तु द्वारा अपने मार्ग पर तय की गई वास्तविक लम्बाई को दूरी कहते हैं। इसमें दिशा का ज्ञान आवश्यक नहीं है। 

• विस्थापन: 

वस्तु की प्रारम्भिक स्थिति और अन्तिम स्थिति के मध्य न्यूनतम दूरी (विशिष्ट दिशा में) को वस्तु का विस्थापन कहते हैं। 

• चाल: 

एकांक समय में वस्तु द्वारा तय की गयी दूरी को वस्तु की चाल कहते हैं। चाल का मात्रक मी./से. होता है। चाल एक अदिश राशि है।


               दूरी

चाल=---------------, 

             समय

             

दूरी=चाल ×समय 

              

             दूरी

समय=---------------

            चाल


वेगः 

वस्तु द्वारा किसी निश्चित दिशा में एकांक समय में तय की गई दूरी को वस्तु का वेग कहते हैं । वेग का मात्रक मी./से. होता है। वेग एक सदिश राशि है।



             दूरी

वेग=---------------

            चाल


चाल एक अदिश राशि है, जबकि वेग एक सदिश राशि है। 


भौतिक राशियां दो प्रकार की होती है : (1) अदिश (2) सदिश। 

• अदिश राशियां: 

ऐसी भौतिक राशियां जिनका केवल परिमाण होता है और जिनमें दिशा का बोध नहीं होता है, को अदिश राशियां कहते हैं। जैसे-द्रव्यमान, चाल, ताप, क्षेत्रफल, आयतन, ऊर्जा, शक्ति आदि। 

• सदिश राशियां: 

ऐसी भौतिक राशियां जिनमें परिमाण के साथ दिशा का भी बोध होता है, को सदिश राशियां कहते हैं। जैसेविस्थापन, वेग, त्वरण, बल आदि। 


• त्वरण: 

वस्तु के वेग में परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं। त्वरण को 'a' से प्रदर्शित किया जाता है। त्वरण का मात्रक मीटर/सेकण्ड2 होता है।


                     वेग में परिवर्तन 

          त्वरण=--------------------------

                   परिवर्तन में लगा समय 

 गतिशील वस्तु के वेग में समान समयान्तराल में समान परिवर्तन  को वस्तु का समान त्वरण कहते हैं और ऐसी गति को समान त्वरित गति कहते हैं।




बल force


• बल एक साधन है जो स्थिर वस्तु को गतिमान या गतिमान वस्तु की गति या दिशा या दोनों में ही परिवर्तन कर देता हैं । बल का मात्रक न्युटन होता है।

• जब एक वस्तु पर अनेक बल कार्यरत हो और उनके परिणामी बल का मान शून्य हों तो ऐसे बलों के समूह को संतुलित बल कहते हैं। परिणामी बल का मान शून्य नहीं हो तो असंतुलित बल कहलाता है।

• न्युटन के गति के नियम

1.गति का प्रथम नियम: 

यदि कोई वस्तु स्थिर है या समरूप गति अवस्था में है तो वह इसी अवस्था में रहेगी जब तक उस पर कोई बाहरी कार्य नहीं करता है। इसे जड़त्व का नियम' भी कहते हैं। 

2 गति का द्वितीय नियम:

वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस पर आरोपित बल के बराबर होती है तथा संवेग में परिवर्तन सदैव ही बल की दिशा में होता है।

3 गति का तृतीय नियमः 

प्रत्येक क्रिया की उसके बराबर तथा विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है। क्रिया-प्रतिक्रिया सदैव भिन्न भिन्न वस्तुओं पर होती है। 

 

• संवेगः 

किसी वस्तु में गति के परिमाण को संवेग कहते हैं । संवेग एक सदिश राशि है। जिसका मात्रक कि.ग्रा. मी./से. होता है। 

• संवेग संरक्षण का नियमः वस्तुओं की टक्कर के पूर्व का कुल संवेग, टक्कर के पश्चात् के कुल संवेग के बराबर होता है। यहीं संवेग संरक्षण का नियम हैं।

•  न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियमः ब्रह्माण्ड में प्रत्येक कण दूसरे कण को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह आकर्षण बल दोनों कणों के द्रव्यमान के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती होता है और उनके मध्य की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

• निर्वात में स्वतन्त्रतापूर्वक गिरने वाली सभी वस्तुएं (भारी या हल्की) समान त्वरण से पृथ्वी की ओर गिरती हैं। स्वतन्त्रतापूर्वक गिरती हुई वस्तु का गुरुत्वीय त्वरण का मान वस्तु के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता हैं 

• भारहीनता: 

कोई भी वस्तु जब स्वतन्त्रतापूर्वक गिरती है अर्थात् पृथ्वी के गुरुत्वीय त्वरण से गिरती है तो वह भारहीन हो जाती है । 

 


कार्य (Work) 

 बल तथा बल की दिशा में विस्थापन के गुणनफल को कार्य कहते हैं। यह एक अदिश राशि है। इसका मात्रक जूल है।

W= बल x बल की दिशा में विस्थापन  


ऊर्जा (Energy)


कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। ऊर्जा दो प्रकार की होती है: (i) गतिज ऊर्जा (ii) स्थितिज ऊर्जा

 (i) गतिज ऊर्जाः 

वस्तु में गति के कारण उत्पन्न ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं।

 (ii) स्थितिज ऊर्जाः 

वस्तु में अपनी स्थिति के कारण उत्पन्न

ऊर्जा को स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।


• ऊर्जा द्रव्यमान सम्बन्धः 

• सापेक्षवाद का सिद्धान्त   प्रतिपादित करने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्सटाइन के अनुसार द्रव्य तथा ऊर्जा परस्पर परिवर्तनीय है, अर्थात् द्रव्यमान को ऊर्जा में तथा ऊर्जा को द्रव्यमान में बदला जा सकता है।

ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है। और न ही नष्ट की जा सकती है। इसका केवल रूप परिवर्तन किया जा सकता है। यहीं ऊर्जा की अविनाशिता या संरक्षण का नियम है।


शक्ति (Power)

• कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं । यह एक अदिश राशि इसका मात्रक वाट होता है।

               कार्य

 शक्ति =------------

              समय


• वाट बहुत छोटा मात्रक है। अत: शक्ति को किलोवॉट से व्यक्तकरते हैं। 1 किलोवाट (KW) = 1000 वाट 

• ब्रिटिश पद्धति में शक्ति का मात्रक अश्व शक्ति (Horse Power H.P. है।

 1 अश्व शक्ति = 746 वॉट = 0.746 किलोवाट 


 ऊष्मा (Heat) 

  ऊष्मा एक प्रकार की ऊर्जा है, क्योंकि ऊष्मा से अनेक प्रकार के कार्य सम्पन्न होते हैं । ऊष्मा का मात्रक किलो कैलोरी होता है। 

  ताप (Temperature): वस्तु के ठंडेपन या गर्मपन के स्तर को वस्तु का ताप कहते हैं।

• वैज्ञानिक गैलीलियो ने सर्वप्रथम तापमापी बनाया था, जिसमें उन्होंने गैस का प्रयोग किया था। वर्तमान में इसमें पारे का उपयोग होता है। 

• तापमापी: वस्तु का ताप नापने के लिए जिसका उपयोग किया जाता है, तापमापी कहलाते हैं। तापमापी ऊष्मीय प्रसरण के सिद्धान्त पर काम करते हैं । ये अनेक प्रकार के होते हैं । जैसे: सैल्सियस तापमापी, फारेनहाइट तापमापी, रूमर तापमापी। 

ऊष्मीय प्रसरण:

 ऊष्मा से पदार्थों के आयतन में वृद्धि को ऊष्मीय प्रसरण कहते हैं। ठोस, द्रव्य और गैस सभी को गर्म करने पर उनका प्रसरण (प्रसार) होता हैं। ठोस सबसे कम तथा गैस सबसे अधिक प्रसारित होती हैं। 

 • पानी को 0°C से 4°C तक गर्म करने पर पानी का आयतन कम होता है और 4°C से 0°C तक ठंडा करने पर पानी के आयतन में वृद्धि होती है। 0°C से 4°C के मध्य पानी के इस असामान्य व्यवहार को पानी का असंगत प्रसार कहते हैं। 

 • विशिष्ट ऊष्माः 

एक किलोग्राम पदार्थ का ताप 1°C बढ़ाने के लिये आवश्यक ऊष्मा को पदार्थ की विशिष्ट ऊष्मा कहते हैं। इसका मात्रक कि.कै/कि.ग्रा./C होता है। पानी की विशिष्ट ऊष्मा 1.0 होती हैं। 

 • मिश्रण का नियमः

 अन्तिम ताप की अवस्था में अधिक ताप वाली वस्तु द्वारा दी गयी ऊष्मा, कम ताप वाली वस्तु द्वारा ली गयी ऊष्मा के बराबर होती है। वस्तु द्वारा दी गयी ऊष्मा = वस्तु द्वारा ली गयी ऊष्मा स्थिर ताप पर पदार्थ को एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को अवस्था परिवर्तन कहते हैं। जिस ताप पर पदार्थ पिघलता है उसे गलनांक और जिस ताप पर पदार्थ उबलता है उसे क्वथनांक कहते हैं। 

 • गुप्त ऊष्मा (Latent Heat): 

स्थिर ताप पर एक किलोग्राम द्रव्यमान वाले पदार्थ के अवस्था परिवर्तन के लिये आवश्यक ऊष्मा को उस पदार्थ की गुप्त ऊष्मा कहते हैं। इसका मात्रक किलो कैलोरी प्रति किलोग्राम होता है।

Q=mLf 

• स्थिर ताप पर 1 किलोग्राम उबलते (100°C) द्रव को गैस में परिवर्तित करने के लिये आवश्यक ऊष्मा को वाष्पन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं।

Q=mLv 

पानी के वाष्पन की गुप्त ऊष्मा 536 किलो कैलोरी/किग्रा. होती है। 

वायु में उपस्थित नमी को आर्द्रता कहते हैं। ताप बढ़ाने से आर्द्रता बढ़ती है। आर्द्रता दो प्रकार की होती है-आपेक्षिक, निरपेक्ष। 

आपेक्षिक आर्द्रता: 

वायु के एक निश्चित आयतन में उपस्थित जल वाष्प की मात्रा और उस ताप पर उतनी ही वायु को संतृप्त करने के लिये आवश्यक जल वाष्प की मात्रा के अनुपात को आपेक्षिक आर्द्रता कहते हैं। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

 ऊष्मा का संचरण तीन विधियों द्वारा होता है: (i) चालन (Conduction) (ii) संवहन (Convection) (iii) fafancut (Radiation)

 

 प्रकाश (Light) 

 स्रोतः प्रकाश भी एक प्रकार की ऊर्जा है । सूर्य, तारे आदि प्रकाश के प्राकृतिक स्रोत है। जबकि मोमबत्ती,लैम्प, टार्च, बल्ब इत्यादि प्रकाश के मानव निर्मित स्रोत हैं। 

 

प्रकाश का अपवर्तनः 

प्रकाश के एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करने पर पृथक्कारी पृष्ठ पर मूल मार्ग से विचलन की प्रक्रिया को अपवर्तन कहते हैं। • प्रकाश का वेग हवा या निर्वात में सर्वाधिक (3x108 मी./से.) होता है, परन्तु सघन (पानी या काँच) माध्यमों में इसका वेग कम हो जाता है। 


अपवर्तन के नियमः 

(i) अपवर्तित किरण, आपतित किरण व अभिलम्ब एक ही तल में होते हैं।

(ii) आपतन कोण की ज्या व अपवर्तन कोण की ज्या कि निष्पत्ति सदैव किन्हीं दो माध्यमों के लिये निश्चित रहती है। इस राशि को पहले माध्यम के सापेक्ष दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहते हैं। sini

निम्न घटनायें अपवर्तन के कारण होती है:

(i) पानी में पैंदे पर रखे सिक्के का ऊपर उठा हुआ दिखाई देना (ii) क्षितिज से नीचे होने पर भी सूर्य का दिखना (iii) रात्रि में तारों का टिमटिमाना (iv) पानी में रखी छड़ का मुड़ा हुआ दिखाई देना 

क्रांतिक कोणः किसी भी माध्यम में आपतन कोण के उस चरम मान को जिसका संगत अपवर्तन कोण (विरल माध्यम में) 90° है, क्रांतिक कोण कहते हैं। 

पूर्ण आन्तरिक परावर्तनः किसी सघन माध्यम में संचरित होती हुई प्रकाश किरण विरल माध्यम के पृथकित पृष्ठ पर क्रांतिक कोण से अधिक कोण पर आपतित हो तो पुनः उसी माध्यम में परावर्तित हो जाती है। उदाहरण-जल में रखी परखनली का चमकना, प्रकाश तन्तु, पूर्ण परावर्तक प्रिज्म आदि।

 वर्ण विक्षेपण: 

प्रकाश जब प्रिज्म में से गुजरता है तो सात रंगों में विभक्त हो जाता है। इसे प्रकाश का वर्ण विक्षेपण कहते हैं। प्रकाश के रंगों को ‘VIBGYOR' से बताते हैं। 

 दृष्टि परास-आंख के लिए दृष्टि परास 25 सेमी से अनन्त बिन्दू तक होता है।

लैन्स क्षमताः किसी लैन्स की क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रम के बराबर होती है। इसका मात्रक डायप्टर होता है।

  ऊतल लैन्स की लैन्स क्षमता धनात्मक तथा अवतल लैन्स की क्षमता ऋणात्मक होती है। 


विद्युत (Electricity) 

विद्युत परिपथ में आवेश प्रवाह की दर को विद्युत धारा कहते हैं।

विद्युत धारा के प्रवाह की दिशा, इलेक्ट्रान प्रवाह की दिशा के विपरीत होती है। इलेक्ट्रान परिपथ में ऋण से धन टर्मिनल की ओर गति करते हैं, जबकि विद्युत धारा धन से ऋण टर्मिनल की ओर गति करती हैं। विद्युत धारा का मात्रक ऐम्पियर होता है, किसी परिपथ में 1 कूलाम आवेश 1 सेकण्ड तक प्रवाहित होने पर प्रवाहित धारा का मान 1 ऐम्पियर होता है। विद्युत विभव का मात्रक जूल/कूलाम होता है, जबकि विभवान्तर का मात्रक वोल्ट होता है। 


 ओम का नियमः 

 किसी चालक की भौतिक अवस्थाएं (जैसे: ताप, अनुप्रस्थ काट, लम्बाई आदि) स्थिर रहे तो चालक के सिरों के मध्य उत्पन्न विभवान्तर उसमें प्रवाहित धारा के अनुक्रमानुपाती होता है। V = IR, जहां R स्थिरांक है, जिसे चालक का प्रतिरोध कहते हैं। 

 चालक के प्रतिरोध (R) का मात्रक ओम  होता है। 

 

 ओमः 

 किसी चालक में 1 ऐम्पियर धारा प्रवाहित करने पर उसके सिरों के मध्य उत्पन्न विभवान्तर 1 वोल्ट हो तो उस चालक का प्रतिरोध 1 ओम होगा।


 वोल्ट: 

यदि 1 ओम प्रतिरोध वाले चालक तार में 1 एम्पियर धारा प्रवाहित की जाएं तो उसके सिरों के मध्य उत्पन्न विभवान्तर 1 वोल्ट होगा। 

 किसी चालक का प्रतिरोध उसकी लम्बाई अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल, ताप तथा पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है। 

  विशिष्ट प्रतिरोधः एक मीटर लम्बे और एक वर्ग मीटर

अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल वाले चालक तार के प्रतिरोध को उस पदार्थ की प्रतिरोधकता या विशिष्ट प्रतिरोध कहते हैं । इसका मात्रक ओम x मीटर होता है।  चालक तार का प्रतिरोध ताप वृद्धि के साथ बढ़ता है। परन्तु अर्द्ध चालकों का प्रतिरोध ताप वृद्धि के साथ घटता है। जैसे: जर्मेनियम, सिलीकन, कार्बन आदि। 

अतिचालकता:

ताप कम करने पर अचानक किसी निश्चित ताप पर प्रतिरोध का शून्य हो जाना अति चालकता कहलाता है । जैसे: पारा (4.2°K ताप पर), मर्करी क्यूपरेट ऑक्साइड (133°K ताप पर) विद्युत परिपथ में प्रतिरोधों को दो प्रकार से संयोजित किया जा सकता है :(1) श्रेणी क्रम (2) समान्तर क्रम श्रेणी क्रम में तुल्य प्रतिरोध R=R+R,+R,.......... 

समान्तर क्रम में तुल्य प्रतिरोध 1/R=1/R1=1/R2


 सेल: 

 वे साधन जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित करने के काम आते हैं, सेल कहलाते हैं। सेल दो प्रकार के होते हैं: 

(1) प्राथमिक सेल: 

लेक्लांशे सेल, डेनियल सेल, शुष्क सेल

 (2) द्वितीयक सेल: 

सीसा संचालक सेल, लोह निकिल सेल आदि। प्राथमिक सेल पुनः आवेशित नहीं किये जा सकते है, परन्तु द्वितीयक सेल पुन: आवेशित किये जा सकते हैं। 

 अमीटर 

 परिपथ में धारा नापने के काम आता है तथा उसे श्रेणी क्रम में लगाया जाता है। आदर्श अमीटर का प्रतिरोध शून्य होता है। 

 वोल्टमीटर

  परिपथ में चालक के सिरों के मध्य उत्पन्न विभवान्तर नापने के काम आता है। उसे समान्तर क्रम में लगाया जाता है। आदर्श वोल्ट मीटर का प्रतिरोध अनन्त होता है। विद्युत धारा से उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र की खोज ऑरस्टेड ने सन् 1819 में की थी। किसी चुम्बकीय क्षेत्र में पृष्ठ के लम्बवत गुजरने वाली कुल



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