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Wednesday, January 29, 2020

भाषा के विविध रूप एवं सीखने की प्रक्रिया


Bhasha ke vividh roop
भाषा के विविध रूप




भाषा के विविध रूप

 विविधता भाषा का एक महत्वपूर्ण तत्व है। यह विविधता व्यक्ति विभिन्न स्तरों पर समाज के सम्पर्कों से उत्पन्न होती है। व्यक्ति परिवार तक सीमित न रहकर अपने कार्यों के कारण दूर -दूर तक यात्रा करता है, और विभिन्न भाषाओं के सम्पर्क में आता है। उस पर सभी भाषाओं व व्यक्तियों के भाषिक प्रयोगों का असर होता है। इसके कारण भाषा के अनेक रूप विकसित होते हैं। इनमें प्रमुख हैं।

मातृभाषा

-बालक जन्म में ही अपनी माँ के मुख से जिस भाषा को सुनता है और सीखता है, उसकी मातृभाषा होती है। 
बोली-
यह किसी भाषा की उपभाषा या उसकी भी एक अंग- उपांग होती है। भेद भाषा के स्थानीय आधार पर प्रयोग-भेद की विभिन्नता के कारण होता हैं इसमें सीमित शब्दावली, व्याकरणिक रूप-उच्चारण,लिंग, वचन और वाक्य गठन आदि अस्थिर होते है।

 प्रादेशिक भाषा-

 यह किसी प्रदेश या प्रांत के विस्तृत भू-भाग में निवास करने वाले अधिकांश लोगों की भाषा होती है। इसका अपना साहित्य एवं लिपि होती है। 

 राज भाषा-

 जिस भाषा का प्रयोग शासन एवं सरकार के कामकाज को संपादित करने के लिए किया जाता है राज भाषा होती है। हिंदी भाषा भारत की राज भाषा है जिसे 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने स्वीकार किया। 

  राष्ट्रभाषा- 

  जिस भाषा को सम्पूर्ण राष्ट्र के लोग विचार विनिमय एवं संपर्क के माध्यम के रूप में स्वीकार करते है एवं जो पूरे राष्ट्र में बोली व समझी जाती है राष्ट्रभाषा कहलाती है।

भाषा की विशेषताएं 

भाषा अर्जित सम्पत्ति है (वंशानुगत नहीं)- मनुष्य अर्जन करता है।
भाषा सामाजिक प्रक्रिया है (वैयक्तिक उपयोग की नहीं) - समाज में रहकर सीखता है। 
भाषा अनुकरण से सीखी जाती है । सुनकर 
भाषा परम्परागत है (वैयक्तिक उत्पाद नहीं) 
भाषा सतत परिवर्तनशील प्रक्रिया है - अंतिम स्वरूप नहीं
प्रत्येक भाषा की संरचना दुसरी भाषा से भिन्न होती है। भाषा कठिनता से सरलता की ओर अग्रसर होती है।

             भाषा सीखने का मनोविज्ञान

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 शिशु जन्म से अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में लग जाता है । इस कार्य में उसकी ज्ञानेन्द्रियों सहायता करती हैं। दुनिया में समझने और अपनी समझ को अभिव्यक्त करने में बच्चे का मनोविज्ञान उसकी मदद करता है।

इस प्रक्रिया में भाषा सीखने में कुछ मनोवैज्ञानिक प्रवृतियाँ कार्य करती हैं, जैसे
1. जिज्ञासा- नए शब्द जानने या सीखने की प्रबल इच्छा। 
2. अनुकरण- सबसे अधिक ज्ञान अनुकरण द्वारा। अभ्यास - अभ्यास और पुनरावृत्ति के द्वारा ही बच्चे भाषाई कौशलों को विकसित करते हैं।

भाषा सीखने की प्रक्रिया
 भाषा सीखने की प्रक्रिया में बालक के मस्तिष्क में चार प्रकार के बिम्ब बनते हैं
 अ. दृश्य बिम्ब-आँख द्वारा देखे जानेवाले पदार्थों के मस्तिष्क में बिम्ब बनते हैं जैसे, घर की वस्तुओं के बिंब । श्रुति बिम्ब-किसी वस्तु, व्यक्ति, पशु-पक्षी आदि मे देखकर परिवार वालों द्वारा उसका नाम बोला जानना। ऐसा बार-बार होने से बालक के मस्तिष्क में दृश्य-बिम्ब बनने के साथ उसके नाम की ध्वनि को सुनता है। दृश्य बिम्ब और उसका नाम सुनने से बने श्रुति बिम्ब दोनों से मिलकर बालक के मस्तिष्क में प्रत्यय(Concept) बन जाता है जैसे 'गाय' शब्द को  सुनकर गाय 'का बिंब कल्पना में आना। विचार बिम्ब-दृश्य बिम्ब और श्रुति बिम्ब से मिलकर बना हुआ प्रत्यय इतना दृढ़ हो जाता है कि वस्तु की सुपस्थिति में विचार-बिम्ब बनता है। (जैसे- गाय दूध देती है।
 भाव बिम्ब-विचार बिम्ब की विकसित अवस्था ही भाव बिम्ब है विचार बिम्ब में मानसिक क्रिया होती है और भाव बिम्ब में व्यक्ति के हृदय का सहयोग होता है । (जैसे गाय हमारी माता है)

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