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Thursday, January 30, 2020

प्रत्यक्ष विधि

  
Prtyeksh-vidhi-child-devlopment
Prtyeksh-vidhi-child-devlopment 



                    

 प्रत्यक्ष विधि का अर्थ होता है- वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप में
दिखाना। इस विधि को सुगम पद्धति अथवा निर्बाध विधि, समातृ विधि अथवा प्राकृतिक विधि भी कहते हैं। तात्पर्य यह कि वस्तुओं व जीव जन्तुओं का चित्र अथवा प्रतिमान दिखाकर क्रियाओं को करके दिखाना। 
 इस विधि का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांस में 1901 में अंग्रेजी के लिए किया गया। 
इस विधि में तीन मुख्य बातों का रखा जाता है
 1. इसमें मातृ भाषा का प्रयोग वर्जित है।
 2.मौखिक कार्य को प्रधानता दी जानी चाहिए।
 3. वस्तु और शब्द के मध्य सीधा सम्बन्ध स्थापित कर पढ़ाया जाए। 
 इस पद्धति का मुख्य सिद्धांत यह है कि जिस प्रकार बालक श्रवण एवं अनुकरण द्वारा मातृभाषा सीख लेता है, उसी प्रकार वह दूसरी भाषा भी सीख सकता है। इस पद्धति से व्याकरण-अनुवाद प्रणाली के दोष दूर हो जाते है। व्याकरण की सहायता इस पद्धति में नहीं ली जाती है। दूसरी भाषा सिखाने में उसी भाषा का माध्यम अपनाया जाता है, अतः अनुवाद की आवश्यकता नहीं पड़ती। प्रत्यक्ष विधि से सीमित शब्दावली का ही ज्ञान दिया जा सकता अनेक शब्द ऐसे होते हैं जिनकी प्रत्यक्ष व्याख्या नहीं हो सकती। सुनने और बोलने पर अधिक बल होने से वाचन और लेखन गौण हो जाते हैं। भाषा के दो आधारभूत कौशलो-सुनने और बोलने को सीखने का पर्याप्त अवसर मिलता है तथा उस भाषा की ध्वनियों एव उच्चारणों से बालक सहज ही परिचित हो जाता है। इसमें बच्चे को 'अ' से अनार 'ई' से ईख चार्ट में चित्र के साथ या प्रत्यक्ष दिखाकर इन अक्षरों को लिखकर दिया जाता है। अनुभूति और अभिव्यक्ति में सीधा सम्बन्ध होना चाहिए, बीच में कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। इस विधि में कठिनाई यह है कि कुछ संज्ञा शब्दों- पुस्तक, कलम, गेंद, कागज, कुर्सी , मेज , लड़का, लड़की आदि का ज्ञान तो करा दिया जाता है पर भाववाचक शब्दों एवं विशेषणों एवं संरचनात्मक शब्दों के ज्ञान में कठिनाई होती है। इसके द्वारा केवल संज्ञा या उन शब्दों का ज्ञान दिया जा सकता है जिनका चित्र आदि बन सके या जिन चीजों को कक्षा तक लाया जा सके। प्रत्यक्ष पद्धति से पढ़ाने में लेखन तथा व्याकरण का ज्ञान रह जाता है। इस विधि में दूसरी कठिनाई यह है कि वाक्य-संरचनाओं का भी पर्याप्त ज्ञान नहीं कराया जा सकता। प्रश्नोत्तर विधि द्वारा कुछ इने-गिने वाक्यों की संरचना तो बता दी जाती है जैसे, यह क्या है ? वह क्या है ? पर सभी प्रकार की वाक्य-संरचनाओं का ज्ञान कराना बहुत कठिन है। बंगाल में श्री टिपिंग को, बम्बई में श्री फ्रेजर को और मद्रास में श्री येट्स को इस पद्धति को सर्वप्रथम अपनाने का श्रेय दिया जाता है। इस पद्धति में वार्तालाप, मौखिक कार्य एवं बोलने के अभ्यास पर बल दिया जाता है। इस पद्धति में अन्य भाषा को स्वतंत्र एवं पृथक भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है। इस पद्धति में मातृभाषा के प्रयोग को सीमित कर दिया जाता है और सम्पूर्ण वाक्य को इकाई माना जाता है। सीमित शब्द-ज्ञान का प्रयोग करके शब्दावली को नियंत्रित कर दिया जाता है।
प्रत्यक्ष पद्धति में अन्य भाषा के अध्ययन के समय अन्य  में ही आदेश-निर्देश दिये जाते हैं और उसी में विचारों की अभिव्यक्ति की जाती है।

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