भाषा शिक्षण में अनेकों विधियों का प्रयोग होता है परन्तु कुछ महत्त्वपूर्ण निम्न है
इस विधि में विद्यार्थी अध्यापक का अनुकरण करके ही सीखते हैं। अनुकरण विधि प्रारिम्भक स्तर पर उपयोगी होती है। प्रारम्भिक स्तर पर यह लेखन व उच्चारण के लिए उपयुक्त होती है तथा माध्यमिक व उच्च माध्यमिक स्तर पर रचना हेतु उपयुक्त रहती है। |
अनुकरण के प्रकार
1. लेखन हेतु दो प्रकार का अनुकरण होता है
(क) रूपरेखाअनुकरण-
मुद्रित पुस्तिकाएँ जिनमें अक्षर या वाक्य बिन्दु रूप में लिखे होते हैं। बालक उन बिन्दुओं पर पेन्सिल या बालपैन फेरता है और अभ्यास करके अक्षरों या शब्दों को लिखना सीख जाता है,
(ख) स्वतंत्र अनुकरण-
अध्यापक श्यामपट पर, स्लेट पर या अभ्यास पुस्तिका पर अक्षर लिख देता है और बालक से कहता है कि वह नीचे स्वयं उसी प्रकार के अक्षर लिखें। जैसे- 'अ' को देखकर बालक भी ऐसा ही लिखने का प्रयास करें।
उच्चारण अनुकरण
इस पद्धति में अध्यापक एक-एक शब्द कहता जाता है और बालक उस शब्द की ध्वनि का अनुकरण करते चलते हैं। अकरण विधि उन भाषाओं के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है जहाँ पर एक अक्षर की एक से अधिक ध्वनियों होती हैं अथवा जहाँ पर लिखा कुछ जाता है और पढ़ा कुछ जाता है जैसे cut को कट
रचना हेतु अनुकरण विधि
इस विधि में जिस प्रकार की भाषा और शैली में रचना करानी होती है, उसी भाषा और शैली पर आधारित रचना (गद्य,पद्य,नाटक आदि) को विद्यार्थियों के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया जाता है। छात्र दिये हए विषय पर उसी के अनुरूप रचना करने का प्रयास करते हैं। उदाहरणार्थ होली का लेख बताकर दीपावली पर लेख लिखाना। यह विधि पूर्णतः मनोवैज्ञानिक नहीं है। इसमें छात्रों की भाषा तो अपनी होती है; किन्तु शैली के लिए उन्हें आदर्श रचना पर ही निर्भर रहना पड़ता है। अतः यह विधि माध्यमिक कक्षाओं के लिए ही उपयुक्त हो सकती है।
bahutbadiya
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