पृथ्वी की आन्तरिक सरंचना भूपर्पटीJagriti PathJagriti Path

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Wednesday, January 22, 2020

पृथ्वी की आन्तरिक सरंचना भूपर्पटी

विद्वानों ने इन तथ्यों के आधार पर पृथ्वी के आन्तरिक भाग की तीन परतें बताई है। के संस (Success), डेली (Daly), होम्स (Holmes), वान डर ग्राक्ट (Van-deraracht), जैफ्रीज (Jeffreys) आदि के नाम उल्लेखनीय है । इनमें से स्वैस का वर्गीकरण अधिक लोकप्रिय है।

स्वैस का वर्गीकरण (Classification of Success)

पृथ्वी की ऊपरी परत तलछट (Sediments) से निर्मित है । इसमे परतदार शैलो की अधिकता है । इसकी गहराई व घनत्व बहुत कम है । इसकी शैलो का औसत 2.7 है। इसके निर्माण में सिलिका, फैल्सपार तथा अभ्रक के रवेदार कणों की अधिकता होती है। इसके नीचे स्वैस ने पृथ्वी की आन्तरिक संरचना की तीन परतें मानी है।

 1 सियाल (Sial) :

 इसकी विशिष्ट संरचना के कारण इस परत का नामकरण सियाल हूआ है।इसके निर्माण में सिलिका (Silica) व एल्यूमिनियम (Alluminium) की अधिकता होती है। ' अतः इस परत को (Sial) कहते हैं इस परत में शैलों का घनत्व 2.7  से  2.9 तक पाया जाता है । इस परत में ग्रेनाइट व नीस शैलों की प्रधानता होती है । इन शैलो में Acidic अंश अधिक होता है । स्वैस के अनुसार महाद्वीपों निर्माण इन्ही शैलों से का हुआ है । इस परत की गहराई 50 से 300 किलोमीटर तक आकी गई है।


Earth ener crode
Earth


2. सीमा (Sima) : 

सिलिका (Silica) तथा मैगनीशियम (Magnesium) से निर्मित होने के कारण इस परत का नाम सीमा (Sima) रखा गया है । इस परत में बैसाल्ट व गैब्रो शैलों की प्रधानता पाई जाती है । इसमें शैलों का घनत्व 2.9 से 4.7 तक पाया जाता है । यह परत महाद्वीपों के निचले भाग में विस्तत है तथा महासागरीय तली का निर्माण भी सीमा स हुआ है । स्वैस की मान्यता थी कि सियाल से निर्मित महाद्वीप सीमा पर तैर रहे हैं । ज्वालामुखी उदगारों से । निकलने वाले लावा का स्रोत यही परत होती है ।


3. निफे (Nife) :

 इसके निर्माण में निकिल (Nickel) तथा लोहे (Ferrous) की अधिकता होती है । इसलिये इस परत को निफे (Nife) कहा जाता है । इसकी संरचना में इन भारी खनिजों का मिश्रण पाया जाता है । अतः इसका औसत घनत्व 11 से अधिक है | लोहे की अधिकता के कारण इस परत में चुम्बकीय गुण पाया जाता है । इस परत का विस्तार दो हजार किलोमीटर से भूकेन्द्र तक है । अर्थात इस परत का व्यास चार हजार तीन सौ किलोमीट से अधिक है । उनकी मान्यता थी कि धरातल से पृथ्वी के केन्द्र की ओर कुछ सकन्द्राय (Concentric) छल्ले हैं, जिनका घनत्व गहराई की ओर बढ़ता जाता है |

 डेली का वर्गीकरण (Classification of Daly) 

डेली ने घनत्व की भिन्नता के आधार पर भूगर्भ की तीन परतें बताई है -

1. बाह्य परत (Outer Zone) : 

इस परत का घनत्व 3 तथा गहराई लगभग 1, 600 किलोमीटर मानी गई है । यह परत मुख्यतः सिलिकेट से निर्मित है | 

 2. मध्यवर्ती परत (Intermediate Zone) :

 बाह्य परत के नीचे मध्यवर्ती परत है | इसका घनत्व 4.5 से 9 तक तथा गहराई 1,280 किलोमीटर तक मानी गई है । इसमें लौह तत्वों की प्रधानता है | 

 3. केन्द्रीय परत (Central Zone) :

 मध्यवर्ती परत के नीचे केन्द्रीय परत है। इसका घनत्व11.6 माना गया है। यह परत केन्द्र के चारों ओर 3,520 किलोमीटर के घेरे में फैली हुई है। केन्द्रीय परत को उन्होंने ठोस रूप में माना है।


होम्स का वर्गीकरण (Classification of Holmes)

 होम्स ने भूगर्भ की दो परतें बताई हैं - 
1. भूपर्पटी (Crust) : उन्होंने इसका निर्माण पूरी सियाल परत एवं सीमा के ऊपरी भाग से माना है।
2. अधोस्तर (Substratum) : सीमा का निचला भाग एवं निफे इस परत में सम्मिलित माना गया है।
वान डर ग्राट का वर्गीकरण (Classification of Van-der-Grachts)
वान डर ग्राट ने भूगर्भ की संरचना स्पष्ट करने के लिये चार परतें बताई हैं -
 1. बाह्य सियाल पर्पटी (Outer Sialic Crust) : इसका घनत्व 2.75 से 2.9 के मध्य अनुमानित किया गया है । स्थल के नीचे इसकी गहराई 60 कि.मी. तक तथा महासागरोंके नीचे 10 से 20 कि.मी. तक आंकी गई है ।
 2. आन्तरिक सिलिकेट व मैण्टल (Inner Silicate and Mantle) : इसका घनत्व 3.0 से4.75 तक माना गया है । इसकी गहराई 60 से 1, 140 किलोमीटर तक है । 
3. सिलिकेट तथा मिश्रित धातु परत (Layer of Silicate and Mixed Minerals) :
इसका घनत्व 4.75 से 5.0 तक माना गया है । इसकी गहराई 1, 140 से 2, 900किलोमीटर मानी गई है । 4.धात्विक नाभि (Metallic Nucleus) : इसका घनत्व 11 माना गया है । इसकी गहराई 2, 900 किलोमीटर से भूकेन्द्र तक मानी गई है ।

 नवीन मान्यता (Modern Concepts)

  भूकम्पीय तरंगों की गति तथा उनके मार्ग के वैज्ञानिक अध्ययन एवं विश्लेषण के आधार पर पृथ्वा की आन्तरिक संरचना को तीन वृहत मण्डलों - क्रस्ट, मैण्टल तथा भूक्रोड़ में बाँटा गया है । भूकम्पीय तरंगों की गति में अन्तर के आधार पर इन तीन मण्डलों के उपविभाजन भी किये गये है -
   1. भूपर्पटी (Crust) : पृथ्वी की बाह्य परत भूपर्पटी कहलाती है । इसकी गहराई महाद्वीपों के नीचे 50 कि.मी. तथा महासागरों के नीचे 5 कि.मी. मानी गई है । भूकम्पीय तरंगों की गति में अन्तर के आधार पर इसे दो उपभागों में विभक्त किया जाता है ।
   2.  (अ) उपरी पर्पटी (Upper Crust): इसका घनत्व 2.8 है एवं इसका निर्माण ग्रेनाइट चट्टानों से हुआ है । इसमें P- तरंगों की गति 6 कि.मी. प्रति सैकेण्ड होती है । पर्वतीय क्षेत्रों में ग्रेनाइट की परत का अस्तित्व काफी गहराई तक होता है जबकि महासागरों में यह तली के निकट तक ही सीमित रहती है । 
   (ब)निचली पर्पटी (Lower Crust): इसका घनत्व 3.0 है । इस परत में P - तरंगों की गति 6.9 किमी. प्रति सैकेण्ड रहती है । महासागरीय बेसिनों का निर्माण बैसाल्टिक शैलों से हुआ है जो मोहोरोविसिक असातत्य तक विस्तृत है ।


2. मैण्टल (Mantle) : भूपर्पटी के निचले आधार पर भूकम्पीय लहरों की गति में अचानक वृद्धि हो जाती है । अतः भूपर्पटी के निचले भाग तथा ऊपरी मैण्टल के मध्य एक असम्बद्धता उत्पन्न हो जाती है । मोहोरोविसिक महोदय ने 1909 में इस असम्बद्धता की खोज की । अत: इसे मोहोरोविसिक असम्बद्धता या मोहो - असम्बद्धता | असातत्य कहते हैं। भूकम्पीय तरंगों की गति के आधार पर इसको दो उपभागों में बांटा गया है - 
(अ) उपरी मैण्टल (Upper Mantle): पर्पटी के निचले भाग एव ऊपरी मैण्टल के मध्य मोहो-असम्बद्धता क्षेत्र से इसकी गहराई 1000 कि.मी. तक है । इसमें 100 से 200 कि.मी. की गहराई में भूकम्पीय लहरों की गति थोड़ी मन्द हो जाती है | इसीलिये इसे निम्न गति का मण्डल (Zone of low Velocity) भी कहते हैं । भूकम्पीय लहरों के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि अधिकांश भूकम्पो की उत्पत्ति मैण्टल में लगभग 650 कि.मी. की गहराई पर होती है 
 (ब) निम्न मैण्टन (Lower Mantle): इसकी मोटाई 1900 कि.मी. मानी जाती है । दूसरे शब्दों में मोहो - असम्बद्धता से 1000 से 2900 कि.मी. की गहराई तक यह विद्यमान है । इसका घनत्व 4.5 से 8.0 के मध्य है । इस भाग में S- तरंगों के व्यवहार से इसका ठोस अवस्था में होना प्रमाणित होता है। 
3, भूक्रोड (Core) : इसका विस्तार पृथ्वी की सतह से 2900 कि.मी. नीचे से लेकर भूकेन्द्र तक है । इस परत की मोटाई 3471 कि.मी. है । इसका घनत्व 8 से 11 के मध्य पाया जाता है । यहाँ P- तरंगों की गति 13.6 कि.मी. प्रति सैकेण्ड तक हो जाती है । भूकम्पीय तरंगों के व्यवहार में अचानक परिवर्तन होने से निष्कर्ष निकाला जाता है कि भूक्रोड़ के दो उपभांग हैं ।
बाह्य भूक्रोड़ (Outer Core): इसका विस्तार 2900 कि.मी. की गहराई से 5150 कि.मी. की गहराई तक है । इसमें P- तरंगें प्रवेश नहीं कर पाती हैं । इससे यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि यह परत तरल अवस्था में होनी चाहिये । 
आन्तरिक भूक्रोड़ (Inner Core): इसकी मोटाई 1221 कि.मी. है अर्थात यह परत 5150 से 6371 कि.मी. की गहराई तक विस्तृत है । इसमें P-तरंगों की गति पुनः
तेज हो जाती है जिससे यह निष्कर्ष निकालता है कि यह परत ठोस अवस्था में है।

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